मानव अधिकारों के आदर्श को संयुक्त राष्ट्रसंघ के चार्टर में स्वीकार किया गया। चार्टर के अन्तर्गत संयुक्त राष्ट्र संघ को मानव अधिकारों के सम्बन्ध में केवल प्रोत्साहन देने का हो अधिकार है, न कि कोई कार्यवाही करने का वास्तव में, चार्टर इस संबंध में राष्ट्रों के मध्य सहयोग को अधिक आवश्यक मानता है। इसी क्रम में संयुक्त राष्ट्र के मानव अधिकार आयोग (U.N. Commission on Human Rights) को मानव अधिकारों के मूलभूत सिद्धांतों का मसौदा तैयार करने हेतु सौंपा गया। तीन वर्षों के प्रयत्नों के बाद आयोग ने मानव अधिकारों को " विश्वव्यापी घोषणा तैयार किया जिसे संयुक्त राष्ट्र की महासभा ने कुछ संशोधनों के साथ 10 दिसम्बर, 1948 को आम सहमति से स्वीकारा।
मानव अधिकार घोषणा पत्र में प्रस्तावना सहित 30 अनुच्छेद हैं जिसके अन्तर्गत न केवल नागरिक तथा राजनीतिक अधिकारों का बल्कि सामाजिक तथा आर्थिक अधिकारों का भी पहली बार प्रतिपादन किया गया। इस प्रकार प्रस्तावना में 'मानव जाति की जन्मजाति गरिमा और सम्मान तथा अधिकारों' पर बल दिया गया है। साथ ही इस घोषणा को लोकतांत्रिक तथा समाजवादी शक्तियों के बढ़ चुके प्रभाव के अन्तर्गत और मानव अधिकारों एवं लोकतंत्र की रक्षा हेतु विस्तृत पैमाने पर आम व्यक्तियों की सशक्त कार्यवाहियों के परिणामस्वरूप ही स्वीकार किया गया।
अन्तर्राष्ट्रीय प्रसंविदा ने 18 सदस्यों वाली मानव अधिकार समिति की स्थापना की जो प्रसविदा के प्रावधानों को कार्यान्वित करने में किए गए उपायों के पक्षीय राज्यों द्वारा रखे गये प्रतिवेदनों पर विचार करती है। यह कहा जा सकता है कि मानवीय अधिकारों की सार्वभौमिक घोषणा का अधिक महत्व है तथा इसके प्रावधान - सदस्य राज्यों पर बंधनकारी हैं। मार्च, 1968 में माण्ट्रियल में मानवीय अधिकारों की अनौपचारिक सभा में यह मत प्रकट किया गया कि मानवीय अधिकारों की सार्वभौमिक घोषणा चार्टर का अधिकृत निर्वचन है तथा कालान्तर में यह प्रथा सम्बंधी अन्तर्राष्ट्रीय कानून का एक भाग हो गया है।
मानवाधिकार आयोग का कार्यालय जेनेवा में स्थित है। वर्तमान में इस आयोग में सदस्यों की संख्या 32 है। साथ ही विभिन्न देशों के लगभग 45 अधिकारी इसके कार्यालय में कार्यरत हैं। मानवाधिकार आयोग के सचिवालय को प्रतिदिन सैकड़ों शिकायतें मिलती हैं। इन शिकायतों पर वर्ष में एक बार अमेरिका, फ्रांस, सोवियत संघ, एक लैटिन अमेरिकी और एक अफ्रीकी देश के प्रतिनिधि विचार करते हैं। इन प्रतिनिधियों द्वारा किये गये सिफारिशों पर संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार अनुभाग का एक उच्चायोग एक गुप्त बैठक में सम्बद्ध देश के आचरण पर विचार कर अपनी सिफारिश मानवाधिकार आयोग के पास भेजता है। आयोग के सभी प्रतिनिधि सरकारी होते हैं जो अपने देश तथा गुटों को ध्यान में रखकर फैसला करते हैं।