संयुक्त राष्ट्रसंघ घोषणा-पत्र (चार्टर) की धारा 7 में उसके जिन छ: अंगों का उल्लेख किया गया है, उनकी भूमिका का वर्णन अग्रवत् है - (i) महासभा : यह संयुक्त राष्ट्रसंघ का सबसे प्रमुख अंग है। महासभा एक विचार विमर्शीय संस्था है। इसमें सभी सदस्य देशों के प्रतिनिधि शामिल होते हैं। संयुक्त राष्ट्रसंघ के प्राय: सभी महत्त्वपूर्ण कार्य इसी अंग के द्वारा सम्पादित होते हैं। जिसके अन्तर्गत राष्ट्रों को सदस्यता प्रदान करना एवं उनके निष्कासन, महासचिव का निर्वाचन एवं अन्य आर्थिक मुद्दों पर निर्णय लिए जाते हैं।
(ii) सुरक्षा परिषद् : यह राष्ट्रसंघ की सबसे महत्त्वपूर्ण एवं शक्तिशाली अंग है। घोषणा-पत्र के अनुसार अन्तर्राष्ट्रीय शांति एवं सुरक्षा बनाये रखने का उत्तरदायित्व इसी पर दिया गया है। राजनीतिक विषयों में सुरक्षा परिषद् संयुक्त राष्ट्रसंघ का कार्यपालक अंग है। सुरक्षा परिषद् जहाँ एक ओर अन्तर्राष्ट्रीय तनाव कम करने तथा विवाद शांतिपूर्ण ढंग से सुलझाने में सहायता करती है, वहीं दूसरी ओर आक्रामक देश के विरुद्ध आर्थिक प्रतिबन्ध एवं सैनिक कार्यवाही भी करती है। सुरक्षा परिषद् के निर्णयों पर पाँच स्थायी सदस्यों का मतैक्य आवश्यक है।
(iii) आर्थिक एवं सामाजिक परिषद् : इसका उद्देश्य विश्व को अधिक समृद्ध, स्थायी और न्यायपरायण बनाना है। यह अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर आर्थिक, सामाजिक, शैक्षिक एवं स्वास्थ्य से सम्बन्धित विषयों पर अध्ययन करती है और इससे सम्बन्धित विभिन्न सूचनाएँ सुरक्षा परिषद् को प्रदान करती है। इसका मुख्य कार्य अन्य अन्तर्राष्ट्रीय संस्थाओं का सम्बन्ध स्थापित करना है।
(iv) न्यास परिषद् : न्यास पद्धति का तात्पर्य यह है कि उन्नत एवं विकसित राष्ट्र अव्यवस्थित एवं अविकसित क्षेत्रों का शासन धरोहर के रूप में सम्भाले जो अपना शासन स्वयं करने तथा अपने हितों की देखभाल में सक्षम नहीं हैं। यह परिषद् उन प्रदेशों में जहाँ अभी तक पूर्ण स्वतंत्र शासन नहीं, वहाँ के निवासियों के हितों की रक्षा के लिए अन्तर्राष्ट्रीय न्यास कार्य करती है। उदाहरण के लिए प्रशांत महासागर में स्थित माइक्रोनेशिया के चार द्वीप समूह इसी संगठन के निर्देश पर संयुक्त राज्य अमेरिका के शासन में है।