भारत (India) की कुल आबादी में 48.52 प्रतिशत नारियाँ हैं। केवल पुरुषों की उन्नति से भारत का विकास संभव नहीं है।
यही कारण है कि स्वतंत्र भारत (Independent India) में नारियों की स्थिति में सुधार लाने के लिए सरकार द्वारा निम्नलिखित महत्त्वपूर्ण कदम उठाए गए है —
1. कानूनी संरक्षण– भारत सरकार ने नारियों की स्थिति में सुधार के लिए कानूनों का भी सहारा लिया है। अनेक कानून बनाए गए ताकि उनकी स्थिति में सुधार हो सके।
उदाहरण के लिए, कानून द्वारा ही लड़कियों के विवाह के लिए 18 वर्ष की आयु निश्चित की गई है। पति से अलग होने पर भी स्त्रियों को भरण-पोषण के लिए एक निश्चित राशि पाने की व्यवस्था कानून बनाकर की गई है।
नारियों को भी विरासत की संपत्ति पर अधिकार दिया गया है। उनके साथ किए जानेवाले विभिन्न गलत व्यवहारों को अपराध घोषित किया गया है।
2. शिक्षा की व्यवस्था— नारियों की शिक्षा के लिए भी सरकार ने अनेक उपाय किए हैं। उनके लिए अनेक शिक्षण संस्थानों को स्थापित किया गया है। शिल्पकला, शिशुपालन, गृह उद्योग जैसे क्षेत्र में महिलाओं को प्रशिक्षित करने की व्यवस्था की गई है। सरकार के प्रयास का ही फल है कि आज स्त्रियों की साक्षरता दर में दिनानुदिन वृद्धि होती जा रही है।
3. स्वरोजगार की व्यवस्था— महिलाओं को स्वरोजगार प्राप्त करने के लिए भी सरकार ने अनेक कदम उठाए हैं। ग्रामीण महिला और शिशु विकास योजना (ड्वाकरा) कार्यक्रम भारत के अनेक जिलों में 1982 से चल रहा है। वास्तविक रूप से स्वरोजगार पाने में यह योजना सहायक सिद्ध हुई है।
4. संविधान में संरक्षण— भारत के संविधान में नारियों की स्थिति में सुधार के लिए अनेक प्रावधान किए गए हैं। संविधान में स्त्री और पुरुष दोनों को समान माना गया है।
नौकरी और रोजगार पाने में अवसर की समानता दी गई है तथा मताधिकार के क्षेत्र में किसी प्रकार का भेदभाव नहीं किया गया है। नारियों के स्वास्थ्य की रक्षा के लिए के विशेष प्रावधान किए गए हैं।