मिट्टी की तैयारी कैसे की जाती है? Mitti Ki Taiyari Kaise Ki Jaati Hai?
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मिट्टी की तैयारी कैसे की जाती है? Or, Mitti Ki Taiyari Kaise Ki Jaati Hai?

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मिट्टी एक महत्त्वपूर्ण प्राकृतिक संसाधन (Natural Resources) है। इसमें सभी पौधे उत्पन्न तथा विकसित होते हैं।

यह पौधों की जड़ों को आधार प्रदान करता है। मिट्टी से पौधों को जल तथा पोषक तत्त्व प्राप्त होते हैं। यह पौधों की जड़ों को श्वसन के लिए आवश्यक ऑक्सीजन गैस उपलब्ध कराता है।

ऑक्सीजन गैस मिट्टी के कणों के बीच पाए जानेवाले रंध्रावकाशों (Pore Spaces) में पाया जाता है। मिट्टी में पाए जानेवाले सूक्ष्मजीव तथा केंचुआ जैसे जीव मिट्टी की उर्वरता को बनाए रखने में मदद करते हैं।

मिट्टी में पाए जानेवाले जीवाणु, कवक, प्रोटोजोआ-जैसे सूक्ष्मजीव पौधों तथा जंतुओं के मृत अवशेषों का अपघटन करते हैं तथा ह्यूमस (Humus) का निर्माण करते हैं।

इस कारण इन सूक्ष्मजीवों को अपघटक (Decomposer) कहा जाता है। ह्यूमस से मिट्टी को पोषक तत्त्व प्राप्त होते हैं तथा मिट्टी की जलधारण क्षमता में वृद्धि होती है।

केंचुआ मिट्टी को ऊपर नीचे पलटते रहते हैं जिससे मिट्टी भुरभुरी तथा ढीली हो जाती है। साथ-ही-साथ इससे ह्यूमस भी मिट्टी में अच्छी तरह मिल जाता है।

इस कारण मिट्टी की उर्वरता में वृद्धि करनेवाले सभी सूक्ष्मजीव तथा जंतु को किसानों का मित्र (Friends Of Farmer) भी कहा जाता है।

मिट्टी की उपजाऊ ऊपरी परत को शीर्ष मृदा (Top Soil) कहा जाता है। इसकी मुटाई कुछ सेंटीमीटर ही होती है।

इस परत से पौधे पोषक तत्त्व को प्राप्त करते हैं। मिट्टी को उलटने-पलटने से पोषक तत्त्व मिट्टी की इस ऊपरी परत में आ जाते हैं। इसके अलावा मिट्टी के कणों के बीच वायु संचरण भी बढ़ जाता है।

वायुसंचरण बढ़ने से पौधों की जड़ों को श्वसन में मदद मिलती है। इस प्रकार फसल को उगाने के पहले मिट्टी को उलटनापलटना तथा भुरभुरा करना आवश्यक कृषि कार्य है।

इस कृषिकार्य को जुताई (Tilling Or Ploughing) कहा जाता है। खेतों की जुताई करनेवाला उपकरण हल कहलाता है।

यह लकड़ी या लोहे का बना होता है। इसे बैल, भैस, ऊँट-जैसे पशु या ट्रैक्टर से खींचा जाता है। पशु द्वारा खींचे जानेवाले हल में मात्र एक ब्लेड होता है।

जबकि ट्रैक्टर द्वारा खीचे जानेवाले हल में कई ब्लेड संयुक्त रूप से आपस में जुड़े होते हैं। ट्रैक्टर का प्रयोग बड़े कृषिक्षेत्र की जुताई के लिए किया जाता है।

जुताई से मिट्टी ढीली तथा भुरभुरी हो जाती है। इससे पौधों की जड़ों को नीचे गहराई तक जाने में आसानी होती है।

जुताई करने से मिट्टी की जलधारण क्षमता भी बढ़ जाती है। विभिन्न प्रकार के खरपतवार (Weed) भी जुताई के दौरान जड़ से उखड़ जाते हैं तथा नष्ट हो जाते हैं।

जुताई से मिट्टी में उपस्थित लाभदायक सूक्ष्मजीवों की संख्या में भी वृद्धि होती है। अगर खेत की मिट्टी काफी शुष्क तथा कड़ी होती है तो जुताई से पहले उसमें पानी डाला जाता है।

इससे हल चलाने में सुविधा होती है। जुताई करने के बाद खेतों में मिट्टी के बड़े-बड़े ढेले (Crumbs) बन जाते हैं।

इन मिट्टी के ढेलों को पाटल (Plank) की सहायता से तोड़कर समतल बनाया जाता है। इस पाटल को पशु या ट्रैक्टर की मदद से खींचा जाता है।

मिट्टी के समतलीकरण के कारण टूटी हुई मिट्टी हलके दबाव से बँध जाती है जिससे तेज हवा या वर्षा के कारण मिट्टी का अपरदन नहीं हो पाता है।

मिट्टी के समतलीकरण से सिंचाई के समय जल का फैलाव भी समरूप होता है। अगर सिंचाई की जानेवाली भूमि समतल नहीं होगी तो कहीं ज्यादा पानी जमा हो जाएगा तथा कहीं पानी की कमी हो जाएगी।

इसी कारण खेतों में बुआई तथा सिंचाई के पूर्व खेतों को समतल करना आवश्यक होता है।

जुताई के पहले कभी-कभी खेतों में कंपोस्ट खाद भी डाला जाता है,जो जुताई में अच्छी तरह से मिट्टी में मिल जाते हैं और इस प्रकार मिट्टी तैयार हो जाता है।

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