पधारो भव भव के भगवान। Padharo Bhav Bhav Ke Bhagwan
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पधारो भव भव के भगवान। Padharo Bhav Bhav Ke Bhagwan

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यशोधरा भगवान बुद्ध द्वारा सम्मानित स्वयं को गौरवान्वित महसूस करती है। अपने स्वामी द्वारा सम्मानित किये जाने में वह अपने स्वामी की विजय मानकर उन्हें महान समझती है।

आज अपने स्वामी से सम्मान पाकर वह अपने प्रेम को उत्कर्ष पाती हुई देखती है।

आज वह जब कुछ गाना चाहती है, तो वह अपनी असीम खुशी को पाकर यह भी नहीं सोच पाती है, कि आखिर वह क्या गाये?

वह मग्न होकर मुस्काती रहती है। वह अपने स्वामी के चरणों पर गिरते हुए अपनी खुशी के आँसुओं को चरणामृत माकर पान करती है।

आज वह अपने स्वामी को पाकर सारे उपालम्भ भुल चुकी है। उसकी सारी जिज्ञासाएँ शांत हो चुकी हैं। उसके अंतस में अब कोई भय या संशय नहीं रहा।

अपने प्रणव का उत्कर्ष देखकर भला उसे क्यों न अभिमान हो आज अपने स्वामी के पद (रज) को पोंछकर उसे पर्वस्नान करने का पुण्य सुख प्राप्त होता है।

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