जगदीशचन्द्र माथुर 'ओ सदानीरा' शीर्षक निबंध के माध्यम से गंडक नदी को निमित्त बनाकर उसके किनारे की संस्कृति और जीवन प्रवाह की अंतरंग झाँकी पेश करते हैं जो स्वयं गंडक नदी की तरह प्रवाहित दिखलाई पड़ता है। सर्वप्रथम चंपारण क्षेत्र की प्रकृति के वातावरण का वर्णन करते हुए उसके एक-एक अंग का मनोहारी अंकन करते हैं। जैसे छायावादी कविताओं में प्रकृति का मानवीकरण देखा जा सकता है उसी तरह इस निबंध में भी देखा जा सकता है।
गंडक की महिमा का बखान करते हुए कहते हैं कि ओ सदानीरा ओ चक्रा ! ओ नारायणी। ओ महागंडक ! युगों से दीन-हीन जनता इन विविध नामों से तुझे संबोधित करती रही है। फिर तेरे पूजन के लिए जिस मंदिर की प्रतिष्ठा हो रही है, उसकी नींव बहुत गहरी और मजबूत है। इसे तू ठुकरा न पाएगी।
निबन्ध में लेखक ने गाँधीजी की शिक्षा सम्बन्धी विचारों पर भी प्रकाश डाला है। चंपारण में शिक्षा की व्यवस्था के लिए गाँधीजी ने अनेकों काम किए। उनका विचार था कि ग्रामीण बच्चों की शिक्षा की व्यवस्था किए बिना केवल आर्थिक समस्याओं को सुलझाने से काम नहीं चलेगा। इसके लिए उन्होंने तोन गाँवों में आश्रम विद्यालय स्थापित किया प्रमुखन और भितिहरवा। कुछ निष्ठावान कार्यकर्ताओं को तोनों गाँवों में तैनात किया। बड़हरवा के विद्यालय को श्री बननजी गोखले और उनकी पत्नी विदुषो अवतिकाबाई गोखले ने चलाया। मधुबन में नरहरिदास पारिख और उनकी पत्नी कस्तूरबा तथा अपने सेक्रेटरी महादेव देसाई को नियुक्त किया। भितिहरवा विद्यालय को वयोवृद्ध डॉक्टर देव और सोपन जी ने चलाया। बाद में पुंडलिक जो गए। स्वयं कस्तूरबा भितिहरवा आश्रम में रहीं और इन कर्मठ और विद्वान स्वयंसेवकों की देखभाल की।
गाँधोजो शिक्षा का मतलब सुसंस्कृत बनाने और निष्कलुष चरित्र निर्माण समझते थे। अपने उद्देश्य को प्राप्ति के लिए आचार्य पद्धति के समर्थक थे अर्थात् बच्चे सुसंस्कृत और निष्कलुष चरित्र वाले व्यक्तियों के सानिध्य से ज्ञान प्राप्त करें। अक्षर ज्ञान को वे इस उद्देश्य की प्राप्ति में विधेय मात्र मानते थे।
वर्तमान शिक्षा पद्धति को वे खौफनाक और हेय मानते थे क्योंकि शिक्षा का मतलब है-बौद्धिक और चारित्रिक विकास, लेकिन यह पद्धति उसे कुठित करती है। इस पद्धति में बच्चों को पुस्तक रटाया जाता है ताकि आगे चलकर वे क्लर्क का काम कर सके, उनका सर्वांगीण विकास से कोई सरोकार नहीं है।
गाँधीजी जीविका के लिए नये साधन सीखने के इच्छुक बच्चों के लिए औद्योगिक शिक्षा के पक्षधर थे। तात्पर्य यह नहीं था कि हमारे परंपरागत व्यवसाय में खोट है वरन् यह कि हम ज्ञान प्राप्त कर उसका उपयोग अपने पेशे और जीवन को परिष्कृत करने में करें। पुंडलीक जी भितिहरवा आश्रम विद्यालय के शिक्षक थे। गाँधीजी ने उन्हें बेलगाँव से सन् 1917 में बुलाया था शिक्षा देने और ग्रामीणों के भयारोहण के लिए।