प्रस्तुत पंक्तियों में कवि गुरुगोविन्द सिंह ने स्पष्ट किया है कि ईश्वर शाश्वत है, विश्वरूप है। संसार में जितने भी अभौतिक पदार्थ हैं तथा जितने भी पंचभौतिक तत्त्वों से निर्मित जीव है, वे सभी उसी विश्वरूप परमात्मा के अंश हैं। ये सभी उसी विश्वरूप परमात्मा से उत्पन्न हुए हैं और मृत्यु के पश्चात् उन्हें उसी परमात्मा में मिल जाना है। तात्पर्य यह कि मानव जीवन क्षणिक है, एकमात्र ईश्वर ही अविनाशी है, शाश्वत है।