यहाँ कवि रैदास ने ईश्वर के प्रति अपनी भक्ति-भावना प्रस्तुत करते हुए आत्मा परमात्मा-भक्त और भगवान के पारस्परिक संबंध का उल्लेख किया है।
कवि के अनुसार परमात्मा और भक्त के बीच वही संबंध है, जो चंदन और पानी के बीच है। परमात्मा की महिमा और कृपा की सुगन्ध से भक्त सदा सुगन्धित रहता है।
कवि के अनुसार परमात्मा की सत्ता से ही भक्त की आत्मा के कण-कण का अस्तित्व है। जिस प्रकार पानी चन्दन के सुवास को फैलाने में सहायक होता है, उसी प्रकार आत्मा भी परमात्मा की विराठ सत्ता और अस्तित्व को विकसित करती है।
संत रैदास का पूरा नाम संत रविदास हैं। संत रैदास का जन्म काशी में 1377 ई० (लगभग) हुआ था। संत रैदास को शिरोमणि सत गुरु की उपाधी प्रदान की गई हैं।
रविदास ने छुआ-छूत कि भावना को खतम करने का प्रयास किया और लोगों को भगवान के नाम पर किये जाने वाले विवाद निरर्थक बताया और सभी को आपस में मिल जुल कर रहने का उपदेश दिया।