नवंबर 1944 में सांप्रदायिक समस्याओं गांधी जिन्ना चर्चा विफल होने के बाद एक न्यायिक ढाँचे में सांप्रदायिक समस्या की जाँच करने के लिए गैर-पक्षीय सम्मेलन की स्थायी समिति द्वारा सप्रू समिति (Sapru Samiti) नियुक्त की गई थी। सप्रू समिति का संवैधानिक प्रस्ताव, जिसे आमतौर पर सप्रू समिति की रिपोर्ट के रूप में जाना जाता है। पहली बार 1945 में प्रकाशित हुआ था। इस समिति में तीस सदस्य शामिल थे। इस रिपोर्ट ने पाकिस्तान के लिए मुस्लिम लीग की माँग को खारिज कर दिया गया।
1945 में आजाद हिंद फौज के सिपाहियों के आत्मसर्मपण के बाद लाल किले में मुकदमा चलाने का निर्णय लिया। बचाव पक्ष के वकीलों में तेज बहादुर सप्रू, भूलाभाई देसाई, कैलाशनाथ काटजू, आसफ अली एवं जवाहर लाल नेहरू थे।