भारत के स्वतन्त्रता संघर्ष (Freedom Struggle) में जितना योगदान महात्मा गाँधी का है, सम्भवतः उतना किसी और भारतीय का होगा।
सन्न 1919 ई. से 1947 ई. तक यानि स्वतंत्रता प्राप्ति तक वें भारत की राजनीति पर इस प्रकार छाये रहे, कि बहुत से इतिहासकारों ने इस काल को गाँधी युग (Gandhi Era) नाम दिया है। यह कोई अतिशयोक्ति नहीं।
- देश के स्वतंत्रता संग्राम में सक्रिय भाग लेते हुए उन्होंने अन्य नेताओं का मार्गदर्शन भी किया। अपने अहिंसा की नीति को अपनाकर शांतिपूर्ण ढंग से शक्तिशाली ब्रिटिश सरकार (British Government) को झुका दिया।
- अपने स्वतंत्रता प्राप्त करने के लिए कोई सशक्त संघर्ष या क्रांति नहीं की बल्कि असहयोग, सत्याग्रह, बहिष्कार, स्वदेशी आंदोलन आदि शांतिपूर्ण हथियारों का प्रयोग किया।
- अपने हिन्दू-मुस्लिम एकता (Hindu-Muslim Unity) को बनाए रखने के लिए बहुत प्रयत्न किये ताकि अंग्रेजों द्वारा अपनायी गयी फूट डालो और राज करो की साम्प्रदायिकतापूर्ण नीति सफल न हो सके।
- अपने परिजनों को पूर्ण सम्मान दिलाया और सदियों से उनके साथ होने वाले अन्याय को दूर किया।
- वास्तव में गाँधीजी देश के लिए अपना सर्वस्व न्योछावर करने के लिए सदा तैयार रहते थे। ऐसा करते हुए कई बार गोलियों के बीच जाना पड़ा, कई बार लाठियाँ खानी पड़ी और कई बार जेल जाना पड़ा। फिर भी वे अपने मार्ग पर डटे रहे और वीर सेनानी की भाँति अपने देश की आजादी की लड़ाई में लगे रहे।
- उनके महान नेतृत्व तथा बलिदान के फलस्वरूप अंग्रेज, जिन्होंने जून 1948 ई. को भारत छोड़ने की घोषणा की थी, इससे पहले ही 15 अगस्त 1947 ई. को छोड़कर यहाँ से चले गए।
- यह महात्मा गाँधी ही थे; जिन्होंने राष्ट्रीय आन्दोलन को जन-आन्दोलन बना दिया।
- महात्मा गाँधी द्वारा चलाये गये विभिन्न आन्दोलन जैसे : असहयोग आन्दोलन, सविनय अवज्ञा आन्दोलन, भारत छोड़ो आन्दोलन आदि में अधिकतर जनसाधारण ही थे जिन्होंने बढ़-चढ़कर भाग लिया।
- महात्मा गाँधी के नेतृत्व में जनता ने अपनी एकता की शक्ति (Power of Unity) को पहचाना। महात्मा गाँधी ने ही साधारण लोगों में नए उत्साह का सृजन किया और उनमें आत्मबल पैदा किया। लोगों ने उनके नेतृत्व में रहकर कुर्बानी और आत्म-निर्भरता का पाठ पढ़ा और अपने देश को स्वतन्त्र कराने में सफलता प्राप्त की।