सन् 1991 ई० में भारत में अभूतपूर्व आर्थिक संकट उत्पन्न हो गया था, विदेशी मुद्रा का भंडार समाप्त हो रहा था, नये ऋण नहीं मिल रहे थे और विदेशी निवेश वापस होने लगे थे।
इन समस्याओं के समाधान के लिए जुलाई, 1991 में नई आर्थिक नीति लागू की गई, जिसके अन्तर्गत नई औद्योगिक नीति भी लागू हुई ।
इस नीति के तीन मुख्य लक्ष्य हैं— उदारीकरण, निजीकरण और वैश्वीकरण (भू-मंडलीकरण)
i. उदारीकरण (Liberalisation) : उदारीकरण आर्थिक विकास की एक प्रक्रिया है, जिसके द्वारा उद्योगों और व्यापार को लालफीताशाही के अनावश्यक प्रतिबंध से मुक्त किया जाता है।
इसके अन्तर्गत 6 उद्योगों को छोड़कर अन्य सभी उद्योगों को लाइसेंस से मुक्त कर दिया गया है।
सार्वजनिक क्षेत्र में घाटे में चलने वाले कुछ उद्योगों को निजी क्षेत्र में दे दिया गया है तथा कुछ उद्योगों के शेयर वित्तीय संस्थाओं, सामान्य जनता और कामगारों को दिये गये।
विदेशी पूंजी निवेश पर से प्रतिबंध हटाया गया, विदेशी तकनीक के प्रवेश का उदारीकरण हुआ और औद्योगिक स्थानीयकरण में भी उदारता प्रदान की गई। इससे उद्योगों को बड़ा लाभ हुआ।
ii. निजीकरण (Privatisation) : निजीकरण का अर्थ है देश के अधिकतर उद्योगों के स्वामित्व, नियंत्रण तथा प्रबंध का निजी क्षेत्र में किया जाना।
इस औद्योगिक नीति में सार्वजनिक क्षेत्र में उद्योगों की प्राथमिकता को खत्म कर दिया गया और निजी क्षेत्र को महत्त्वपूर्ण भूमिका सौंपी गई।
सार्वजनिक क्षेत्र में मजबूरन कुछ अलाभकारी उद्योगों को लेना पड़ा।
iii. वैश्वीकरण (Globalisation) : वैश्वीकरण का अर्थ मुक्त व्यापार तथा पूँजी और श्रम की मुक्त गतिशीलता द्वारा देश की अर्थव्यवस्था को संसार की अर्थव्यवस्था के साथ एकीकृत करना है।
दूसरे शब्दों में, विदेशी पूँजी निवेश तथा विदेशी व्यापार को (आयात निर्यात के प्रति बंधों को यथासंभव समाप्त करके) प्रोत्साहित करना है।
भारत में इस नीति के अंतर्गत विदेशी प्रत्यक्ष निवेश के लिए अर्थव्यवस्था को खोला गया, बहुराष्ट्रीय कंपनियों के प्रवेश पर लगे प्रतिबंध को खत्म किया गया
तथा भारतीय कंपनियों को विदेशी कंपनियों के सहयोग से उद्योग खोलने, की अनुमति प्रदान की गई।
इससे उद्योगों का तो विकास हुआ, किन्तु विकसित और विकासशील राज्यों के बीच अंतर बहुत बढ़ गया है।
उदाहरणस्वरूप— 1991-2000 में कुल औद्योगिक निवेश का 23% औद्योगिक रूप से विकसित महाराष्ट्र के लिए, 17% गुजरात के लिए, 7% आंध्रप्रदेश के लिए और 6% तमिलनाडु के लिए था।
जबकि सबसे अधिक जनसंख्या वाले उत्तरप्रदेश के लिए केवल 8% और सात उत्तर-पूर्वी राज्यों के लिए केवल 1% था।
वास्तव में, आर्थिक रूप से कमजोर राज्य खुले बाजार में औद्योगिक निवेश को आकर्षित नहीं कर पा रहे हैं।