Ans. विकास की यह नई संकल्पना है। इसे सतत् विकास अथवा धारणीय विकास भी कहा जाता है। सतत् विकास में वर्तमान तथा भावी पीढ़ियों की आवश्यकताओं को पूरा करने का प्रावधान होता है। इसका अर्थ है मृदा या वन जैसे मूल्यवान साधनों का उपयोग इस गति से करें ताकि उनका उसी गति से प्राकृतिक रूप से पुनःस्थापन या पुनश्चक्रण हो सके। पृथ्वी के परितंत्र को संरक्षित करने के लिये हमें प्रकृति के साथ तालमेल बनाकर कार्य करने होंगे।
विकास का उद्देश्य है कि लाभ का समान वितरण, आर्थिक प्रगति तथा परितंत्र की कम-से-कम हानि। इस उद्देश्य को सतत् विकास की विधि से प्राप्त किया जा सकता है। सतत् विकास संकल्पना का सिद्धांत है पर्यावरण संसाधनों का उनकी पुनर्भरण की क्षमता के अनुसार उपयोग ताकि उनकी निरन्तर आपूर्ति सुनिश्चित की जा सके। विकास के अनेक प्रकार पर्यावरण के उन्हीं संसाधनों का ह्रास करते हैं जिन पर वे आधारित होते हैं। परिणामस्वरूप आर्थिक विकास में बाधा पड़ती है। इसलिये सतत् विकास से परितंत्र के स्थायित्व का सदैव ध्यान रखा जा सकता है।