मानव विकास सूचकांक की दृष्टि से विश्व के 172 देशों में भारत का स्थान 127वाँ है और इसे मध्यम मानव विकास दर्शाने वाले देशों में रखा गया है।
भारत के विभिन्न राज्यों में भी मानव विकास के स्तरों में भिन्नता पायी जाती है। भारत के योजना आयोग ने राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों के मानव विकास सूचकांक का परिकलन किया है।
इसके अनुसार 0.638 संयुक्त सूचकांक मूल्य के साथ केरल कोटिक्रम में सर्वोच्च है। इसके बाद क्रमश: पंजाब, तमिलनाडु, महाराष्ट्र और हरियाणा (सभी 0.5 से अधिक) आते हैं।
दूसरी ओर, देश के 15 प्रमुख राज्यों में बिहार (0.367) का स्थान सबसे नीचे है।
बिहार के अतिरिक्त, असम, उत्तरप्रदेश, मध्यप्रदेश और उड़ीसा (0.386 से 0.404) भी कोटिक्रम में नीचे हैं।
भारत में मानव विकास के स्तरों में प्रादेशिक भिन्नता के कई कारण हैं, जिनमें साक्षरता, आर्थिक विकास और उपनिवेशकाल में विकसित प्रादेशिक विकृतियाँ और सामाजिक विषमताएँ मुख्य हैं।
केरल भारत का सबसे अधिक साक्षर (90.92%) राज्य हैं। इसी प्रकार पंजाब (69.68%), तमिलनाडु (73.47%), महाराष्ट्र (77.27%) और हरियाणा (68.59%) भी अधिक साक्षर राज्य हैं।
साक्षरता के उच्च स्तर मानव विकास सूचकांक के उच्च स्तर के कारण हैं।
दूसरी ओर, बिहार में कुल साक्षरता दर भारत के सभी राज्यों से निम्न (47.53%) है और यह मानव विकास में भी निम्नतम स्तर पर है।
मानव विकास के निम्न स्तर वाले अन्य राज्य असम (64.28%), उत्तरप्रदेश (57.36%), मध्यप्रदेश (64.11%) और उड़ीसा (63.61%) में भी साक्षरता का स्तर निम्न है।
इन निम्न स्तर वाले राज्यों में पुरुष और स्त्री साक्षरता के बीच अधिक अंतर है।
इसी प्रकार, आर्थिक दृष्टि से विकसित महाराष्ट्र, तमिलनाडु, पंजाब और हरियाणा जैसे राज्यों में मानव विकास सूचकांक का मूल्य असम, बिहार, मध्यप्रदेश जैसे पिछड़े राज्यों की तुलना में ऊँचा है।
उपनिवेश काल में विकसित प्रादेशिक विकृतियाँ और सामाजिक विषमताएँ अब भी भारत की अर्थव्यवस्था और समाज में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा रही है।