भारतीय राष्ट्रीय आन्दोलन के विकास और आधुनिक भारत के निर्माण में पं० जवाहरलाल नेहरू की अनुपम देन है। उन्होंने अपना जीवन राष्ट्र सेवा में अर्पित कर दिया था। उनका जन्म 14 नवम्बर, 1889 ई० में हुआ। उनके पिता पं० मोतीलाल नेहरू इलाहाबाद में उच्च कोटि के वकील माने जाते थे। इकलौते पुत्र होने के कारण जवाहरलाल जी का लालन-पालन तथा पठन-पाठन ठाट-बाट से हुआ। हाई स्कूल की परीक्षा पास करने के बाद वे कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय के ट्रिनिटी कॉलेज में दाखिल हुए जहाँ से उन्होंने बी० एस० सी (ट्रायपस) की परीक्षा पास की। सन् 1902 ई० में उन्होंने इनरटेम्पुल से बैरिस्ट्री की परीक्षा पास की।
सन् 1946 ई० में जब अन्तरिम सरकार की स्थापना हुई तो वे उसके प्रधान रहे। स्वतन्त्रता प्राप्ति के बाद वे स्वतन्त्र भारत के प्रधानमन्त्री हुए। इस पद पर वे अपनी मृत्यु तक बने रहे। उन्होंने देश की प्रगति, उसकी आर्थिक उन्नति, औद्योगिक विकास, शिक्षा प्रसार आदि के लिए अकथनीय प्रयत्न किया। भारतीय उन्हें हृदय सम्राट मानते रहे। आज जवाहरलाल हमारे बीच नहीं हैं; फिर भी उनका व्यक्तित्व हमारा पथ-प्रदर्शन कर रहा है। आधुनिक भारत नेहरूजी के परिश्रम का ही फल है।
नेहरू का दृष्टिकोण उदार तथा व्यापक था। वे अन्धविश्वास, धर्मान्धता, रूढ़िवादिता और साम्प्रदायिकता से घृणा करते थे। साम्प्रदायिकता को तो वे अभिशाप मानते थे और सदा इस समस्या के निराकरण के लिए प्रयत्न करते रहे। वे धर्म निरपेक्ष राज्य (Secular State) के समर्थक थे। उसके प्रयत्न से ही भारत में धर्म निरपेक्ष राज्य की स्थापना हो सकी।
सार्वजनिक जीवन के प्रारम्भिक काल से ही जवाहरलाल नेहरू समाजवादी थे। उन नेतृत्व में काँग्रेस के अन्तर्गत समाजवादी दल की स्थापना हुई। उन्होंने काँग्रेस का उद्देश्य भारत में समाजवादी समाज की स्थापना निश्चित किया और देश की आर्थिक प्रगति के लिए मिश्रित अर्थ-व्यवस्था अपनाने की चेष्टा की।
जवाहरलाल नेहरू अन्तर्राष्ट्रवादी थे और विश्व शान्ति के अग्रदूत थे। उन्होंने विश्व में शान्ति स्थापना के उद्देश्य से पंचशील के सिद्धांत का प्रतिपादन किया और यू० एन० ओ० जैसी अन्तर्राष्ट्रीय संस्था के सफल संचालन से योग दिया। वे चाहते थे कि विश्व में विवादों का निर्णय युद्ध द्वारा न सफल होकर, पारस्परिक विचार-विनिमय द्वारा हो । सन् 1947 ई० से ही वे काँग्रेस की वैदेशिक नीति का संचालन करते रहे और विश्व के प्रायः सभी देशों के साथ उनका मैत्रीपूर्ण सम्बन्ध रहा। अन्तर्राष्ट्रीय क्षेत्र में स्वतन्त्र भारत को उच्च स्थान दिलाने का श्रेय उन्हीं को है। सन् 1929 ई० में महात्मा गाँधी ने कहा था कि, “बहादुरी में कोई उनसे बढ़ नहीं सकता और देश-प्रेम में उनसे आगे कौन जा सकता है ? कुछ लोग कहते हैं कि वे उतावले और अधीर हैं। यह तो इस समय का एक विशिष्ट गुण है। फिर जहाँ उनमें वीर योद्धा की उग्रता, स्फूर्ति तथा अधीरता है वहाँ एक राजनीतिक का विवेक भी है।