अंग्रेजों द्वारा तुर्की साम्राज्य का विभाजन करने के विरुद्ध खिलाफत आंदोलन प्रारंभ हुआ।
दिल्ली में 23 नवंबर, 1919 को होने वाले खिलाफत कमेटी के सम्मेलन की अध्यक्षता महात्मा गांधी (Mahatma Gandhi) को प्रदान की गई।
दिसंबर, 1919 में हुए भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के अमृतसर अधिवेशन से खिलाफत आंदोलन को और अधिक बढ़ावा मिला।
गांधीजी ने इसे हिंदू-मुस्लिम एकता के एक ऐसे स्वर्णिम अवसर के रूप में देखा, जो आगे सौ वर्षों में भी नहीं प्राप्त हो सकता। तदनुसार उन्होंने अंग्रेजों के विरुद्ध आंदोलन में भारतीय मुसलमानों का सहयोग प्राप्त करने के लिए खिलाफत आंदोलन का समर्थन किया।