सूती वस्त्र बनाने में भारत (India) का एकाधिकार बहुत प्राचीन काल (Anciant time) से चला आ रहा है।
परन्तु आधुनिक पहली सूती मिल की स्थापना सन् 1818 ई० कोलकाता के निकट फोर्ट-ग्लास्टर (Fort Gloster) नामक स्थान पर स्थापित की गई।
लेकिन यह मिल कुछ समय बाद बंद हो गई और वास्तविक पहली सफल मिल मुम्बई में सन् 1854 ई० में काबस जी नानाभाई डाबर ने लगाई और इसके बाद भारत में आधुनिक वस्त्र उद्योग का विकास होने लगा।
सूती वस्त्र उद्योग आज भारत का सबसे विशाल उद्योग है। यह कृषि के बाद रोजगार प्रदान करने वाला दूसरा सबसे बड़ा क्षेत्र है।
जिसमें विभिन्न उद्योगों में लगे श्रम का लगभग 20 प्रतिशत से अधिक पाया जाता है।
वर्तमान में औद्योगिक उत्पादन में इसका स्थान 14 प्रतिशत है और सकल घरेलू उत्पादन में इसका योगदान 4.0 प्रतिशत है एवं विदेशी आय में 17 प्रतिशत है।
(2006-07) देश में लगभग 1600 सूती और कृत्रिम वस्त्र बनाने वाली मिलें हैं। इसमें 80 प्रतिशत मिलें निजी क्षेत्र में हैं।
शेष सार्वजनिक एवं सहकारी क्षेत्रों में हैं। आज देश में 93 प्रतिशत सूती वस्त्र विकेन्द्रीकृत क्षेत्र में तैयार किया जाता है। अर्थात मिलों के अलावा कपड़ा विभिन्न केन्द्रों में तैयार किया जाता है।
प्रारंभिक वर्षों में सूती वस्त्र उद्योग की अधिकांश मिलें महाराष्ट्र और गुजरात में स्थापित थी। कपास, बाजार, परिवहन और आर्द्र जलवायु की उपलब्धता ने इन राज्यों में सूती मिलों को स्थापित करने में विशेष योगदान दिया है।
परन्तु आज देश की अधिकांश मिलें महाराष्ट्र, गुजरात, पश्चिम बंगाल, उत्तर प्रदेश, तथा तमिलनाडु में केन्द्रित हैं।
महाराष्ट्र में मुम्बई, शोलापुर, पुणे, वर्धा, नागपुर, औरंगाबाद और जलगाँव सूती वस्त्र उद्योग के केन्द्र हैं।
गुजरात में अहमदाबाद, बदोदरा, सूरत, राजकोट और पोरबंदर प्रमुख सूती वस्त्र उद्योग के केन्द्र हैं।