ऐसे साक्ष्य मिले हैं जिनके अनुसार लगभग 1800 ईसा पूर्व तक चोलिस्तान जैसे क्षेत्रों में अधिकांश विकसित हड़प्पा स्थलों को त्याग दिया गया था।
इसके साथ ही हरियाणा, गुजरात, उत्तरप्रदेश की नयी बस्तियों में आबादी बढ़ने लगी थी। ऐसा लगता है कि उत्तर हड़प्पा के क्षेत्र 1900 ईसा पूर्व के बाद भी अस्तित्व में रहे। कुछ चुने हुए हड़प्पा स्थलों की भौतिक संस्कृति में बदलाव आया था जैसे सभ्यता की विशिष्ट पुरावस्तुओं-बाटों, मुहरों तथा विशिष्ट मनकों का समाप्त हो जाना।
लेखन, लंबी दूरी का व्यापार तथा शिल्प विशेषज्ञता भी समाप्त हो गई। सामान्यतः थोड़ी वस्तुओं के निर्माण के लिए थोड़ा ही माल प्रयोग में लाया जाता था।
आवास निर्माण की तकनीकों का ह्रास हुआ तथा बड़ी सार्वजनिक संरचनाओं का निर्माण अब बंद हो गया। कुल मिलाकर पुरावस्तुएँ तथा बस्तियाँ इन संस्कृतियों में एक ग्रामीण जीवनशैली की ओर संकेत करती हैं।
इन संस्कृतियों को "उत्तर हड़प्पा" अथवा "अनुवर्ती संस्कृतियाँ" कहा गया।