द्वितीय विश्वयुद्ध (World War-॥) में जापान की पराजय के बाद फ्रांस ने लाओस पर अधिकार कर लिया था। यहाँ के दो प्रांतों-फोंगसाली और होई आफ्रांस—में साम्यवादियों ने अपनी स्थिति मजबूत कर ली थी।
वे शेष लाओस में अपना प्रभाव बढ़ाना चाहते थे। जेनेवा समझौता के बाद लाओस के राजवंश के तीन राजकुमार अपना-अपना आधिपत्य स्थापित करना चाहते थे। इसलिए, गृहयुद्ध आरंभ हो गया।
दिसंबर 1955 में लाओस में राष्ट्रीय सरकार का गठन सुवन्ना फूमा, जो तटस्थतावादी था, के नेतृत्व में हुआ। सुफुन्ना बोंग, जिसने पाथेट लाओ नामक सैन्य संगठन बनाया और जो वामपंथी था।
इस व्यवस्था से संतुष्ट नहीं था। उसने वियतनाम की सहायता से गुरिल्ला युद्ध आरंभ कर दिया। 1957 की वियनतियन की संधि के बाद दोनों पक्षों में समझौता हो गया। अमेरिका ने इस समझौता को लागू होने नहीं दिया।
फलतः, पुनः युद्ध और राजनीतिक अव्यवस्था का दौर आरंभ हो गया। फलस्वरूप, विश्वशांति के लिए खतरा उत्पन्न हो गया। शांति बहाली के लिए 1961 में चौदह राष्ट्रों का सम्मेलन बुलाया गया।
परंतु, इसका कोई कारगर परिणाम नहीं निकला। सरकारें बदलती रहीं और अशांति बनी रही। 1971 में अमेरिकी संरक्षण में दक्षिणी वियतनामी सैनिक लाओस में प्रवेश कर गए।
पाथेट लाओ ने सोवियत संघ, ब्रिटेन और चीन से अमेरिकी आक्रमण को रोकने का अनुरोध किया, लेकिन अमेरिका ने बात नहीं मानी तथा हो ची मिन्ह मार्ग पर कब्जा करने का प्रयास किया, परंतु वह सफल नहीं हो सका। उसे बाध्य होकर लौटना पड़ा।
अमेरिकी नीति विफल रही। अमेरिका लाओस में वामपंथी प्रसार को नहीं रोक सका। यह अमेरिका की बड़ी विफलता थी।