मासिक चक्र क्या है? किसी महिला में मासिक चक्र के दौरान हुए विभिन्न परिवर्तनों का वर्णन करें।
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मासिक चक्र क्या है? किसी महिला में मासिक चक्र के दौरान हुए विभिन्न परिवर्तनों का वर्णन करें। Masik Chakra Kya Hai? Kisi Mahila Mein Masik Chakra Ke Dauran Hui Vibhinn Parivartanon Ka Varnan Karen.

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मासिक-चक्र (Menstrual cycle) – यह मानव मादाओं (प्राइमेट्स से सम्बन्धित) में लगातार बार-बार होने वाले काथकीय परिवर्तन है जो औसतन प्रति 28 दिन के बाद (चन्द्र मास) इनके पूरे प्रजनन जीवन में रजोदर्शन से लेकर रजोनिवृत्ति तक केवल गर्भधारण काल को छोड़कर सम्पन्न होते रहते हैं।

ये चक्र हर बार योनि स्राव, जो अपरदित गर्भाशय अन्तःस्तर को रक्त की कुछ मात्रा के साथ रखता है, के रूप में लक्षण स्वरूप विसर्जित किया जाता है।

रजो-चक्र गोमेडोट्रापिन्स व अण्डाशयी हॉर्मोन्स के द्वारा नियंत्रित होता है । रजो-चक्र की तीन प्रावस्थाएँ - रज, प्रचुरोद्भवन एवं स्रावी होती हैं ।

(i) रज या आर्तव प्रावस्था (Menstrual phase) - यह रजो-चक्र लैंगिक चक्र की प्रथम प्रावस्था है जो स्त्रियों में 3-5 दिन तक रहती है ।

इस काल में मादा जनन वाहिनी (गर्भाशय) का अन्तःस्तर निकल कर धीरे-धीरे रक्त, सीरम तरल एवं श्लेषिक अंशों के साथ बहकर योनि से बाहर निकलता रहता है । इसकी कुल मात्रा 75-100 ml होती है।

रजो प्रावस्था उस समय होती है जब अण्डाशयी व गोनेडोट्रापिन्स हॉर्मोन्स का अनुमापक कम होता है ।

(ii) प्रचुरोद्भवन या इंस्ट्रोजन प्रावस्था (Proliferative or Estrogen Phase) – रजोस्राव बन्द होने के उपरान्त प्रथम दो दिन (पुनः प्राप्ति अवस्था) प्रचुरोद्भवन प्रावस्था के गर्भाशयी उपकला के पुनः निर्माण एवं टूटी हुई रक्त वाहिकाओं की मरम्मत करने में लग जाते हैं। इसके बाद 7-9 दिन तक गर्भाशय अन्तःस्तर में वृद्धि होती है ।

इसकी मोटाई बढ़ जाती है। नमी रक्त कोशिकाओं का निर्माण होता है। गर्भाशयी ग्रन्थियाँ लम्बी होकर कुण्डल बनाती हैं।

स्रावी कोशिकाएँ और अधिक सक्रिय हो जाती है। जनन वाहिका की पेशियाँ और सक्रिय हो जाती हैं।

योनि ग्रीवा में श्लेषिक तन्तु बन जाते हैं जो शुक्राणुओं के गति करने हेतु निर्देशी नाल बनाते हैं।

इस अवस्था की समाप्ति के बाद गर्भाशयी अन्तःस्तर 3 mm मोटा हो जाता है ।

(iii) ल्यूमिटल या स्त्रावी प्रावस्था (Lutealor secretory phase) - यह प्रोजेस्ट्रान प्रावस्था भी कहलाती है । यह 12-14 दिन का होता है । यह अण्डोत्सर्ग के बाद आरम्भ होता है। इस दौरान दो प्रकार के परिवर्तन होते हैं

(a) कार्पस ल्यूटियम– यह मुख्यतः पोजस्ट्रनि तथा कुछ मात्रा में एस्ट्रोजन हॉर्मोन को स्रावित करता है।

प्रावरक कोशिकाओं द्वारा कुछ एन्ड्रोजिन्स भी स्रावित होते हैं। इसमें LH के प्रभाव वृद्धि करती है। रिक्त ग्रेफियन पुटिका

(b) गर्भाशय अन्तःस्तर (एन्डोमेट्रियम)- LH व प्रोजेस्टिरॉन दोनों गर्भाशयी अन्तःस्तर की और वृद्धि करने तथा मोटा होने में सहायक होते हैं।

एन्डोमेट्रियम की मोटाई 5-6mm हो जाती है।

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