कवि अयोध्यासिंह उपाध्याय हरिऔध को देश की स्वतंत्रता के नए बिहान की उत्कंठित प्रतीक्षा है।
यह सच है, कि पराधीनता की स्थिति में व्यक्ति का अपना कुछ भी अस्तित्व नहीं रहता। पराधीनता की बेड़ी में उसका सब कुछ जकड़ा रहता है। उसकी वाणी कुंठित रहती है, जिससे वह खुले रूप में अपना कोई भी विचार प्रकट नहीं कर सकता।
पुनः पराधीन देश के नागरिक को हर जगह हेय और उपेक्षा की दृष्टि से देखा जाता है। यही कारण है, कि कवि नए बिहान के स्वागत के लिए पलक पाँवड़े बिछाकर तथा उत्कंठित होकर देश की स्वतंत्रता की प्रतीक्षा करता है।