महादेवी अपने को नीर भरी दुख की बदली इसलिए कहती है, क्योंकि वह अपने दुख और व्यथा से परिपूर्ण क्षणभंगुर जीवन को आकाश के एक कोने में उठी बदली का प्रतिरूप मानती है।
बदली उठती है, उसके आगमन से संसार हर्षित-पुलकित होता है; फिर थोड़ी देर बाद उसका कोई चिह्न नहीं रहता। यही स्थिति मानव जीवन का है।
कवयित्री के भाव-जगत् में पीड़ा और वेदना का राज्य है। जिस प्रकार बदली जल से भरी रहती है, उसी प्रकार वेदना के कारण महादेवी की आँखें सदा आँसुओं से भरी रहती हैं।