द्रव्य की ठोस, द्रव तथा गैस तीनों अवस्थाओं और उनके गुणधर्म की व्याख्या अन्तर-परमाणविक तथा अन्तराणविक बलों के आधार पर की जा सकती है।
ठोस का आकार तथा आकृति दोनों निश्चित होते हैं। द्रवों का आयतन तो निश्चित होता है, लेकिन आकृति नहीं। गैसों का न तो आयतन निश्चित होता है और न ही आकृति । द्रव्य की इन तीनों अवस्थाओं में अन्तर - अन्तराणविक तथा अन्तर-परमाणविक बलों के अलग-अलग परिमाणों तथा परमाणुओं व अणुओं में तापीय विक्षोभ के स्तर (degree of thermal agitation) में अन्तर के कारण होता है। गैस (Gas) - गैसों में परमाणुओं तथा अणुओं के बीच की दूरी काफी अधिक होती है। दो अणुओं के बीच की दूरी आणविक व्यास की लगभग 10 गुनी होती है।
निम्न दाब पर यह दूरी और अधिक बढ़ जाती है । इतनी अधिक दूरी के कारण गैसों में परमाणुओं व अणुओं के बीच लगने वाला बल अत्यन्त क्षीण होता है।
अतः गैस के परमाणु व अणु मुक्त कणों की भाँति व्यवहार करते हैं तथा अनियमित गति करते हुए एकदूसरे से टकराते रहते हैं।
निम्न ताप पर गैस के अणुओं की गति धीमी हो जाती है। अब दाब बढ़ाने पर उनके बीच की दूरी भी कम हो जाती है। ताप व दाब के एक निश्चित मान पर अन्तराणविक दूरी इतनी कम हो जाती है कि अब अणुओं की औसत गतिज ऊर्जा अणुओं की ऋणात्मक (आकर्षणात्मक) स्थितिज ऊर्जा से भी कम हो जाती है।
इस स्थिति में गैस का परिवर्तन द्रव में हो जाता है ।
ro द्रव (Liquid)—द्रवों में अन्तराणविक दूरी बहुत कम होती है, लेकिन यह अणुओं की न्यूनतम स्थितिज ऊर्जा के संगत दूरी से अधिक होती है।
अत: द्रव के अणु भी अनियमित गति करते रहते हैं, लेकिन यह गति गैस के अणुओं की गति से बहुत कम होती है। उदाहरण के लिए, किसी ताप पर जितने समय में गैस का अणु 700 Å की दूरी तय करता है, उसी ताप पर उतने ही समय में द्रव का अणु 3Á की दूरी तय करता है।
ठोस (Solid)—जब किसी द्रव को ठण्डा किया जाता है, तो उसके अणु दूरी से कुछ ही अधिक तक एक-दूसरे के पास आ पाते हैं तथा न्यूनतम स्थितिज ऊर्जा की स्थिति में आने का प्रयत्न करते हैं। इस प्रकार द्रव के अणु एक-दूसरे के सापेक्ष न्यूनतम ऊर्जा स्तर ग्रहण करते हैं तथा नियमित तरीके से व्यवस्थित हो जाते हैं।
यह द्रव का ठोस अवस्था में परिवर्तन है। ठोसों के अणु एक स्थान से दूसरे स्थान तक नहीं जा सकते, केवल अपने निश्चित स्थानों पर ही छोटे आयाम से कम्पन गति कर सकते हैं ।
अणुओं के बीच की औसत दूरी स्थिर होने के कारण ही प्रत्येक ठोस का आकार तथा आकृति निश्चित होते हैं ।
आधुनिक अनुसन्धानों से ज्ञात होता है कि ठोस अवस्था प्राप्त करने के लिए अन्तर-परमाणविक व अन्तराणविक आकर्षण बलों की नहीं, अपितु प्रतिकर्षण बलों की आवश्यकता होती है।
यदि अणुओं की आकृति गोलाकार न होकर कुछ और है तो द्रव्य की अवस्थाओं के कुछ अन्य प्रकार भी सम्भव हैं।
जैसे यदि अणु की आकृति छड़ की भाँति हो, तो ये द्रव-क्रिस्टल (liquid crystals) में संघनित होते हैं, जो क्रिस्टलीय ठोस तथा समदिक द्रव (isotropic liquid) से भिन्न अवस्था है।