लिखना क्या एक तरह की बातचीत ही है? Likhna Kya Ek Tarah Ki Batchit Hi Hai?
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लिखना क्या एक तरह की बातचीत ही है? Likhna Kya Ek Tarah Ki Batchit Hi Hai?

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लिखते वक्त हम किसी से संवाद कर रहे होते हैं, हालाँकि प्रायः वह व्यक्ति हमारे सामने नहीं होता। बहुत-सी बातें हम किसी सूचना, विचार या याद को सुरक्षित रखने के लिये लिखते हैं। यदि मैं अपने आज के अनुभव एक ऊपरी में लिखूँ तो मैं इन अनुभवों को किसी और दिन पढ़ने की आशा में सुरक्षित रख सकूँगा। अध्यापक की हैसियत में हमें बच्चों को लेखन का परिचय बातचीत के एक रूप में देना चाहिए।

स्कूल में दाखिला लेने तक बच्चे कई तरह के लोगों से कई तरह के विषयों पर बात करने की सामर्थ्य हासिल कर चुके होते हैं। उनमें 'श्रोता' बुद्धि (यानी किससे क्या बात करनी है, कैसी करनी है ? ) का बीज पड़ चुका होता है। यह बुद्धि लिखना सीखने के लिए बहुत उपयोगी है, पर इसका प्रयोग बच्चों को अब किसी दूर बैठे श्रोता (पाठक) के लिए करना होगा। कुछ किस्म के “श्रोता" (जैसे अध्यापक या दूसरे बच्चे या स्वयं) पास में उपस्थित भी हो सकते हैं।

यह अध्यापक पर निर्भर है कि बच्चे लिखने को संशोधन या किसी से कुछ कहने की तरह ले पाते हैं या नहीं। यह साफ करना जरूरी है कि आज लिखने के नाम पर जो कुछ हो रहा है हम उससे किसी एकदम भिन्न चीज की चर्चा कर रहे हैं। लाखों बच्चों को लिखना एक यांत्रिक कौशल की तर सिखाया जा रहा है।

शुरू में उनसे अक्षरों की आकृतियों को दर्जनों बार करने के लिए कहा जाता है और अध्यापक उन उतरी हुई आकृतियों को बारीकी से देखता है। इस रीति से पूरी वर्णमाला से निपटने में कई वर्ष लग जाते हैं। इस लम्बी अवधि में लिखना सीखने का कैसा भी उद्देश्य बच्चों की दृष्टि में नहीं रह जाता। बाद में जब उनसे शब्द लिखने या और कुछ दिनों बाद वाक्य बनाने के लिए कहा जाता है तो वे अध्यापक का मुँह यह जानने के लिए ताकते रहते हैं कि वे लिखते क्या हैं?

वे लिखने को अपनी कोई बात कहने के माध्यम के रूप में नहीं ले पाते। वे उसे एक कवायत या कर्मकांड के रूप में देखते हैं जिससे उन्होंने अध्यापक से सीखा है। अब यदि हम इस स्थिति में हटाना चाहते हैं तो हमें लेखक के बात के विस्तार की तरह प्रस्तुत करना होगा।

अतः अध्याय "बातें करना” के अंतर्गत दी गई गतिविधियाँ लिखने की गतिविधियाँ आयोजित करने के लिए बहुत उपयोगी होंगी। बातचीत हमें किसी श्रोता के सामने चीजों को व्यवस्थित करके सुनना सुनाने का मौका देती हैं। इसी कारण वह लिखना सिखाने के लिए इतनी उपयोगी हैं।

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