जर्मनी (Germany) में राष्ट्रवाद का उदय 18वीं शताब्दी के उत्तरार्द्ध में हुआ। इस समय जर्मनी में अनेक राजनीतिक चिंतकों एवं बुद्धिजीवियों का प्रार्दुभाव हुआ।
इन लोगों ने जर्मनी में राष्ट्रीय चेतना की भावना जगाई। इनमें स्टीन, गॉटफ्रीड, कांट, फिक्टे, हीगेल, अंडर्ट, हम्बोल्ट और ग्रिम बंधुओं के नाम विशेष रूप उल्लेखनीय हैं।
स्टीन संवैधानिक राजतंत्र में विश्वास करते थे। गॉटफ्रीड का विचार था कि जर्मन संस्कृति उसके आमलोगों में निहित थी, यह राष्ट्र की आत्मा अथवा वोल्कजिस्ट थी।
हरडर के दार्शनिक चिंतन से जर्मनी में सांस्कृतिक राष्ट्रवाद की नींव पड़ी। गॉटफ्रीड से प्रेरणा लेकर ग्रिम बंधुओं ने जर्मन लोककथाओं का संग्रह ग्रिम्स फेयरी टेल्स प्रकाशित किया।
कांट ने स्वतंत्रता का आदर्श प्रस्तुत किया जबकि फिक्टे ने उग्र राष्ट्रवाद का। हीगेल ने ऐतिहासिक द्वंदवाद की व्याख्या की तथा राज्य में सर्वोच्च सत्ता की कल्पना की।
बिस्मार्क पर हीगेल के विचारों का गहरा प्रभाव पड़ा। अंडर्ट ने अपनी कविताओं के माध्यम से देशभक्ति की भावना जागृत की।
हर्डेनबर्ग तथा नोवोलिस ने जर्मनी के गौरवमय अतीत को उजागर किया। चित्रकारों ने भी जर्मन संस्कृति को उजागर किया।
उनलोगों ने नायकों और नायिकाओं के जीवंत चित्रों के माध्यम से राष्ट्रवाद (Nationalism) को बढ़ावा दिया।
जर्मनी में राष्ट्रवाद के प्रसार में विद्यार्थियों एवं शिक्षण संस्थाओं का भी महत्त्वपूर्ण योगदान था।
शिक्षकों एवं विद्यार्थियों ने जर्मनी के एकीकरण को रूप देने के लिए ब्रुशेन शैफ्ट नामक संस्था का गठन कर राष्ट्रीय एकता आंदोलन चलाया।
वाइमर राज्य का येना विश्वविद्यालय राष्ट्रीय आंदोलन का मुख्य केंद्र था। राष्ट्रवादी भावना से प्रेरित होकर फादर जॉन ने तरुण आंदोलन आरंभ किया।
नैतिक संघ, वैज्ञानिक संघ तथा राजनीतिक व्यायामशालाओं द्वारा राष्ट्रीय चेतना जागृत की गई। आर्थिक एकीकरण जैसे, जॉल्वेराइन शुल्क संघ की स्थापना से भी राष्ट्रवाद को प्रोत्साहन मिला।
नेपोलियन बोनापार्ट (Napoleon Bonaparte) द्वारा जर्मन राइन राज्यसंघ की स्थापना ने भी राष्ट्रवादी भावना का विकास किया।
सन् 1848 ई० की फ्रांसीसी क्रांति ने भी जर्मन राष्ट्रवाद, को बढ़ावा दिया। फ्रैंकफर्ट संसद में जर्मनी को एकीकृत करने का प्रयास किया गया, परंतु यह विफल हो गया।