1920-22 के असहयोग आंदोलन के दौरान बिहार (Bihar) में प्रचलित मान्यताओं में से एक यह थी कि उनकी जीत होगी, क्योंकि गांधी जी को अंग्रेजों को हराने का तरीका पता था।
गांधीजी ने वर्ष 1918 में गुजरात के अहमदाबाद में मिल मजदूरों की हड़ताल का सफल नेतृत्व किया और वर्ष 1920 में उनके द्वारा ब्रिटिश सरकार के साथ अहिंसक असहयोग में न सिर्फ वस्तुओं बल्कि भारत में अंग्रेजों द्वारा संचालित या उनकी मदद से चल रहे संस्थानों जैसे विधायिका, न्यायालय, कार्यालय या स्कूल का बहिष्कार भी शामिल था। इस कार्यक्रम ने देश में जोश फूंक दिया और विदेशी शासन का फंदा काट दिया।
गांधीजी ने हिंदुओं और मुसलमानों को भी एक साथ मंच पर ला दिया। गांधीजी का एक महामानव के रूप में उदय उनके कृत्यों के फलस्वरूप अंग्रेजी शासकों में भय उत्पन्न होने के कारण बिहार के लोगों में विश्वास उत्पन्न हुआ कि हमारी जीत होगी, क्योंकि गांधीजी को अंग्रेजों को हराने का तरीका मालूम था।
गांधीजी ने रचनात्मक कार्यों के जरिए अन्य भारतीय नेताओं के मुकाबले, गांवों में निवास करने वाली देश की 90 प्रतिशत जनता के बहुत अधिक निकट आ गए। इस प्रकार गांवों में रहने वाली करोड़ों की आबादी में जागृति पैदा कर दी और स्वराज्य की मांग को मध्यमवर्गीय आंदोलन के स्तर से उठाकर देशव्यापी अदम्य जन-आंदोलन का रूप दे दिया।