असहयोग आंदोलन (Non-Co-Operation Movement) के निम्नलिखित कारण थे-
प्रथम विश्वयुद्ध का परिणाम - प्रथम विश्वयुद्ध के समय इंगलैंड के प्रधानमंत्री (British Prime Minister) लार्ड जार्ज तथा मित्र राष्ट्रों ने घोषणा की थी, कि वे लोकतन्त्र की रक्षा के लिए लड़ रहे हैं, और वे आत्मनिर्णय के सिद्धान्त का प्रतिपादन करते हैं। परन्तु युद्ध में ब्रिटेन की विजय होने के बावजूद भी ये सिद्धान्त भारत में लागू नहीं किए गए। इससे भारतीयों में असन्तोष की लहर दौड़ पड़ी।
अकाल और महामारी - प्रथम विश्वयुद्ध (First World War) काल में भारत में प्लेग, दुर्भिक्ष तथा महामारी जैसे प्राकृतिक प्रकोप की भारी मार पड़ी थी। परन्तु, ब्रिटिश सरकार ने त्रस्त भारतीयों को राहत प्रदान करने के उद्देश्य से कोई काम नहीं किया। शासन की उपेक्षा के कारण भारतीय विरोध करने लगे।
आर्थिक संकट - युद्ध काल में करों में वृद्धि के साथ-साथ वस्तुओं के मूल्य (Price) आसमान छूने लगे थे। ऐसी स्थिति में सामान्य लोगों को अपनी अनिवार्य मौलिक आवश्यकताओं को भी पूरा करने में काफी कठिनाइयों का सामना करना पड़ रहा था। फलतः आन्दोलन के सिवा कोई दूसरा उपाय ही नहीं रह गया था।
रौलेट ऐक्ट - क्रांतिकारियों के षड्यन्त्रों का सामना करने के उद्देश्य से कानून बनाने हेतु ब्रिटिश सरकार ने जस्टिस रॉलेट की अध्यक्षता में एक समिति बनायी। इस समिति के प्रतिवेदन के आलोक में 18 मार्च, 1919 ई को रौलेट बिल ने कानून का रूप धारण कर लिया और इसे रौलेट ऐक्ट की संज्ञा प्रदान की गयी। इस ऐक्ट के विरोध में 6 अप्रैल, 1919 ई० को पूरे भारत में 6 शान्तिपूर्ण हड़ताल हुई। सरकार द्वारा गाँधीजी को गिरफ्तार (Arrest) कर लेने के बाद अहमदाबाद में उपद्रव हुए जिससे सरकार में और भी अधिक तेजी आ गयी।
जालियाँवाला बाग हत्याकांड - रौलेट ऍक्ट का विरोध करने के लिये समूचे भारत में हड़ताल, सभाएँ और जुलूसों का आयोजन किया गया। इस क्रम में 10 अप्रैल 1919 ई० को अमृतसर के कमिश्नर ने डॉ. सत्यपाल तथा डॉ. किचलू को पंजाब से निष्कासित कर नजरबन्द कर लिया। इस घटना से पूरे अमृतसर में उत्तेजना फैल गयी और लोगों ने इन नेताओं की रिहाई के लिये मारकाट और विरोध प्रदर्शन शुरू कर दिया। स्थिति इतनी बिगड़ गयी कि शहर को सेना के हवाले करना पड़ा। फलत: पंजाब के गवर्नर जनरल डायर ने 12 अप्रैल 1919 ई० को अमृतसर का चार्ज लिया। 13 अप्रैल 1919 ई० को सरकार की नीति का विरोध करने के लिए जालियाँवाला बाग में एक सार्वजनिक सभा का आयोजन किया गया जिसमें लगभग 20 हजार लोगों ने भाग लिया। इस आयोजन की खबर पाते ही जनरल डायर कुछ सैनिकों के साथ वहाँ पहुँचा और निहत्थे लोगों पर गोली चलाने का आदेश दे दिया। गोलियों की वर्षा तभी रुकी जब सैनिकों के बारूद और कारतूस समाप्त हो गए।
हण्टर समिति की रिपोर्ट - जालियाँवाला बाग हत्याकाण्ड की जाँच के लिए ब्रिटिश सरकार ने हण्टर समिति की नियुक्ति की। इस समिति ने सच्चाई पर पर्दा डालते हुए डायर के कदमों का समर्थन किया और सत्ता के पक्ष में अपना प्रतिवेदन दिया। इससे भारतीय लोगों का विश्वास अंग्रेजों की न्याय (Justice) प्रियता से उठ गया और लोगों ने अंग्रेजी शासन के विरुद्ध जेहाद छेड़ने में ही अपनी भलाई समझी।
खिलाफत आन्दोलन - प्रथम विश्वयुद्ध के दरम्यान ब्रिटेन ने भारतीय मुसलमानों की सहायता लेने के उद्देश्य से यह घोषणा की थी, कि वह तुर्की के साथ उदार सन्धि करेगा। इस आश्वासन के बावजूद भी तुर्की के साथ सीवर्स की कठोर संन्धि की गयी। जिसके प्रावधानों के अनुसार मित्र राष्ट्रों ने तुर्की साम्राज्य को आपस में बाँट लिया। खलीफा का अपमान किया गया जिसका और इस्लाम की पावन धरती पर अधिकार कर लिया गया। भारतीय मुसलमान इस घटना से तिलमिला उठे और उनलोगों ने शक्तिशाली खिलाफत आन्दोलन शुरू किया। गाँधीजी ने भी इस आन्दोलन का समर्थन किया। क्योंकि वह अवसर हिन्दू-मुस्लिम एकता के लिए बहुत ही अधिक उपयुक्त था।