आकाशदीप कहानी का आरंभ समुद्र की तरंगों पर हिचकोले खाते पोत पर बंदी बनाकर रखे गए 2 बंदियों के वार्तालाप से होता है।
दोनों बंदी एक दूसरे से अपरिचित और अनजान हैं, तूफान के कारण पोत की व्यवस्था भंग हो जाती है और दोनों परिस्थितियोंवश रात्रि के अंधकार में लुढ़कते हुए एक दूसरे से टकरा जाते हैं।
दोनों बंधन मुक्त होना चाहते हैं और अपने प्रयास में सफल भी हो जाते हैं।जब दोनों हर्षातिरेक से एक दूसरे को गले लगाते हैं, तब उन्हें पता चलता है कि उनमें से एक स्त्री है और दूसरा पुरुष।स्त्री का नाम चंपा और पुरुष का नाम बुद्ध गुप्त है।
चंपा पोताध्यक्ष मणिभद्र के प्रहरी की एकलौती किशोर छत्रिय पुत्री है, 8 बरस से पोत ही उसका घर है।
बुद्धगुप्त एक युवा जलदस्यु है जो ताम्रलिप्त का छत्रिय है।पोत को लूटने के उपक्रम में चंपा के पिता बुद्धगुप्त के हाथों मारे जा चुके हैं।