लाजुक उदय प्रकाश के पिता अन्तर्मुखी और ग्रामीण संवटना के व्यक्ति है। उनको मितभाषिता व गंभीरता उन्हें एक पुरुष की छवि प्रदान करती है। उनकी संतान कम से कम टर्क इसी रूप में देखती है। पिता शहर से आती है। शहर जाने से कतरात है। अपनी सहजता, गंभीरता और गवईयन के बावजूद बच्चों के लिए व अभ्यारण्य है। आधुनिकता के उपकरण सहज जीवन बोध पर किस तरह हावी हो गये हैं इसका पता निरिछ' कहानी में मिलता है।
लेखक के पिता अपने स्वभाव के अनुरूप स्वयं ही लाचार और दयनीय बन जाते है। आज की जटिल जीवन की स्थितियों में सहजता कितनी खतरनाक हो सकती है लेखक के पिता इससे अनभिज्ञ है। अस्तित्व की रक्षा के लिए दृढ़ता आवश्यक है। लेखक के पिता की सहजता उन्हें किसी तरह के प्रतिरोध करने से रोकती है। उन्हें जब धतूर का काढ़ा दिया जाता है तो वे उसे सहज स्वीकार कर लेते हैं। शायद यह जानते हुए भी कि धतुरा घातक नशीला पदार्थ होता है।
लेखक के पिता एक प्रतीकात्मक भूमिका अदा करते हैं। वे कहानीकार के हाथ में एक औजार के रूप में प्रयुक्त हुए हैं, जिसके माध्यम से वह न्याय व्यवस्था, प्रशासन व्यवस्था और आर्थिक व्यवस्था में व्यक्त अमानवीयता को उद्घाटित करता है। लेखक के पिता नयी परिस्थितियों और जीवन मूल्यों से परिचित नहीं लगते अतः वे इससे आक्रांत होते हैं।
वे मितभाषी व गंभीर तो हैं पर दृढ़ नहीं हैं। उनके स्वभाव में आक्रामकता नहीं है। शहर में उनके साथ जो कुछ भी अमानवीय व्यवहार होता है इससे उनको दयनीयता ही प्रकट होती है।