आठवीं सदी के यशोवर्मन के शिलालेख में नालंदा का बड़ा भव्य वर्णन किया गया यहाँ के विहारों की पंक्तियों के ऊँचे-ऊँचे शिखर आकाश में मेघों को छूते थे। विहारों के चारों ओर नीले जल से भरे हुए सरोवर थे, जिनमें सुनहरे एवं लाल कमल तैरते थे। बीच-बीच में सघन आम्रकुंजों की सुखद छाया थी।
यहाँ के भवनों के शिल्प और स्थापत्य को देखकर आश्चर्य होता था। उनमें अनेक प्रकार के अलंकरण और सुन्दर मूर्तियाँ थीं। भारत के अनेक संघारामों में नालंदा का संघाराम अद्वितीय था। पुरातत्व विभाग की खुदाई में नालंदा विश्वविद्यालय के जो अवशेष प्राप्त हुए हैं, उनसे इन वर्णनों की सच्चाई प्रकट होती है।