यह अर्थ हमारे अंदर होता है। जब कोई व्यक्ति कुछ लिखता है तो उसके दिमाग में कोई अर्थ होता है, जिसे लिखित संकेतों में कागज पर उतारा जाता है। जब हम इन संकेतों को देखते हैं तो अपने पूर्व अनुभवों, भाषा ज्ञान व सामूहिक समझ के आधार पर अर्थ का पुनः निर्माण करते हैं। यदि कोई शब्द हमारे अनुभव के बाहर का होता है तो पहले तो सन्दर्भ के आधार पर समझने की कोशिश करते हैं।