प्लेटो ने अपने ग्रन्थ 'रिपब्लिक' में आदर्श राज्य की कल्पना की थी, जिसका शासक दार्शनिक शासक था। प्लेटो का विश्वास था कि आदर्श राज्य की स्थापना से राजनीतिक दोषों का अन्त हो जाएगा। प्लेटो ने स्वयं लिखा था कि 'जब तक दार्शनिक' जो विश्व में राजाओं के राजा, राजकुमारों के राजकुमार हैं, दर्शन की शक्ति और भावना से ओत-प्रोत हैं..... नगरों को - उनके कुप्रभावों से कभी भी मुक्ति मिल सकती है।
प्लेटो की 'रिपब्लिक' सुकरात के विचारों पर आधारित तथा 'लॉज' 'रिपब्लिक' के संशोधित विचारों का प्रकटीकरण है। फिर भी लॉज रिपब्लिक के आदर्श के विरूद्ध नहीं था। प्लेटो जब इससे विश्वस्त हो गया कि न तो आदर्श राज्य की स्थापना हो सकती है और न ही दार्शनिक शासक की प्राप्ति तब प्लेटो ने अपने ग्रन्थ लॉज में एक ऐसे राज्य की स्थापना की जिसमें वह अपने आदर्शों का प्रतिबिम्ब कानून के आधार पर देख सके। यह आदर्श राज्य सिद्धान्तों से हटकर था। इसलिए प्लेटो ने, इसे 'उप आदर्श राज्य' की संज्ञा से सम्बोधित किया था। प्लेटो के आदर्श राज्य की प्रमुख विशेषतायें निम्नलिखित हैं :
- अर्थव्यवस्था की निश्चितता : प्लेटो द्वारा प्रतिपादित आदर्श राज्य में विदेशी, गुलाम तथा नागरिक तीन प्रकार के व्यक्ति निवास करते हैं। प्लेटो ने इनका कार्य विभाजन इस प्रकार किया था कि नागरिकता का कार्य शासन प्रबन्ध, विदेशियों का कार्य व्यापार करना तथा गुलामों का कार्य खेती करना था। लॉज के अनुसार जमीन एवं मकान को प्लेटो ने सम्पत्ति का रूप स्वीकार किया है। आर्थिक व्यवस्था के आधार पर प्लेटो ने राज्य को तीन भागों में विभक्त किया है 'आदर्श राज्य', उपादर्श राज्य' तथा 'वर्तमान राज्य'। इनके प्रथम वर्ग के नागरिकों में उन लोगों को सम्मिलित किया जाता है, जिनके पास जीविका कमाने के लिए धन हों, दूसरे वर्ग में और अधिक धन वाले, तीसरे वर्ग के पास तीन गुणा हो तथा चौथे वर्ग पर चार गुणा धन हो।
- प्रशासनिक इकाईयों को मान्यता : लॉज में प्लेटो ने लोकतंत्रात्मक प्रणाली को अपनाने हेतु जिन प्रशासनिक इकाईयों को मान्यता प्रदान की थी, वे हैं- लोकप्रिय सामान्य सभा, 'परामर्श बोर्ड' तथा 'प्रशासनिक परिषद आदि ।
- व्यवस्थित न्याय प्रणाली : प्लेटो द्वारा प्रतिपादित आदर्श राज्य में न्याय की समुचित व्यवस्था की गई थी । सार्वजनिक जनता तक लाभ पहुँचानें हेतु प्लेटो ने सम्पत्ति के रूप स्वीकार किया है। आर्थिक व्यवस्था के आधार पर अनेक न्यायालयों की स्थापना की थी। जैसे विभागीय न्यायालय, 'न्यायाधीशों के न्यायालय' विशेष क्षेत्रीय न्यायालय' आदि प्लेटो आदर्श राज्य को न्याय पर आधारित एक आदर्श राज्य बनाना चाहता था।
- धार्मिक संस्थाओं के महत्व : प्लेटो ने धार्मिक संस्थाओं को महत्व तो दिया था लेकिन वह चाहता था कि धार्मिक विद्वानों के द्वारा ही धार्मिक क्रियाओं एवं परम्पराओं को निर्धारित.. होना चाहिए। इस प्रकार विदित होता है कि व्यक्तिगत रूप से प्लेटो धार्मिक क्रियाओं पर प्रतिबन्ध लगाने का पक्षपाती था।
- अनेक समस्याओं पर विवाद : समाज में प्रचलित सामाजिक समस्याओं का समाधान करने के उद्देश्य से प्लेटो ने लॉज में अनेक नियमों का निर्धारण किया था। इसके अन्तर्गत सर्वप्रथम सम्पत्ति के नियम, अपराध रोकने के नियम तथा उत्तराधिकार नियमों का उल्लेख किया था।
- कानून की सर्वोच्चता : लॉज में कानून को ही सर्वोच्च स्थान प्रदान किया गया है। उपरोक्त सत्य है कि, क्योंकि प्लेटो ने स्वरचित 'लॉज' में आदर्श राज्य की जो व्यवस्था की है, उसमें सार्वजनिक महत्वाकांक्षाओं को ही कानून का वास्तविक लक्ष्य बताया गया है।
- जनसंख्या की निश्चितता : प्लेटो चाहता था कि राज्य जनसंख्या निश्चित होनी चाहिए। अनुमानतः प्लेटो ने 5040 के लगभग जनसंख्या को निर्धारित किया था। इस पर वह कहता है कि जनसंख्या का निर्धारण भौगोलिक परिस्थितियों के आधार पर करना चाहिए। जिससे राज्य की अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए दूसरे देशों के सामने हाथ फैलाना न पड़े। उसका विचार था कि राज्य को चारों ओर से सुरक्षित तथा कृषि प्रधान होना चाहिए।.
- स्त्रियों की दशा में सुधार : 'रिपब्लिक' में प्लेटो ने सम्पत्ति तथा स्त्रियों के साम्यवाद की व्यवस्था की थी जिसके शासक तथा सैनिक वर्ग स्थायी विवाद नहीं कर सकते थे। इसके विपरीत 'लॉज' में वह शासक व सैनिक वर्ग के लिए विवाह करके पारिवारिक जीवन व्यतीत, करने की अनुमति देता है तथा स्त्रियों को प्रशासनिक कार्यों को नहीं पारिवारिक जीवन व्यतीत करने की अनुमति देता है तथा स्त्रियों को प्रशासनिक कार्यों को नहीं पारिवारिक कार्यों को सौंपता है। प्लेटो ने स्वयं ही कहा है कि विवाह में विरोधी गुण का मिश्रण होना चहिए। अमीर को गरीब से विवाह करना चाहिए, लम्बे युवक को ठिगनी औरत से विवाह करना चाहिये तथा क्रोधी पुरूष को शील स्वभाव वाली स्त्री से विवाह करना चाहिए।
प्लेटो के आदर्श राज्य की निम्न आलोचनायें हैं :
- सिद्धान्तों की अव्यवहारिकता : आलोचकों के अनुसार प्लेटो का आदर्श राज्य काल्पनिक है, आदर्श राज्य के प्रमुख तत्व जैसे परिवार एवं सम्पति का साम्यवाद शिक्षा योजना एवं दार्शनिक का राज्य सभी व्यवहारिक नहीं है। प्लेटो ने इस बारे में कहा था- 'राज्य' शब्दों में ही पाये जाते हैं, पृथ्वी पर मेरी कल्पना के अनुसार वह कहीं स्थापित नहीं है।
- प्रवृत्तियों के आधार पर वर्गीकरण की अमान्यता : इसने मनुष्य की तीन प्रवृतियों क्षुधा, साहस एवं शासक वर्ग में विभक्त किया है, जो उपयुक्त नहीं है। व्यवहारिक रूप से प्रत्येक व्यक्ति में इन तीनों प्रवृत्तियों का सन्तुलन परिवर्तित होता रहता है। अतः किसी को किसी निश्चित वर्ग में नहीं रखा जा सकता।
- वर्गों का अवैज्ञानिक वर्गीकरण : प्लेटो के आदर्श राज्य में तीन वर्गो का विभाजन वैज्ञानिक नहीं है। यह आवश्यक नहीं है कि इन प्रवृतियों के द्वारा ही वर्ग विभाजन हो। एक व्यक्ति में एक साथ कई प्रवृतियाँ हो सकती हैं। वह एक अच्छा विजेता और शासक भी हो सकता है। यह भी आवश्यक नहीं कि मनुष्य तीन प्रवृत्तियों द्वारा ही चलता हो। यह अवैज्ञानिक है।
- बहुसंख्यकों की उपेक्षा : उसने उत्पादक वर्ग की पूर्ण रूप से अवहेलना की है। इस वर्ग को उसने कभी भी महत्व नहीं दिया। इस वर्ग के लिये न तो पर्याप्त शिक्षा की व्यवस्था है और न साम्यवाद की नई व्यवस्था ही। यह एक बहुसंख्यक वर्ग था जिसकी उसने पूर्ण रूप से उपेक्षा की है।
- दास प्रथा का समर्थन : प्राचीन यूनानी राज्य में सभी स्थानों पर दास प्रथा थी। प्लेटों ने इस सार्वभौमिक प्रथा का कहीं भी वर्णन नहीं किया है। अतः यह निष्कर्ष निकाला जा सकता है कि उनकी अवस्था में वह किसी प्रकार के परिवर्तन के पक्ष में नहीं है। न्याय के अग्रदूत द्वारा दास प्रथा का मौन समर्थन न्यायोचित नहीं ठहराया जा सकता।
- साम्यवाद की दूषित प्रणाली : प्लेटो की साम्यवादी व्यवस्था दो वर्गों के लिए है अतः उत्पादक वर्ग की उपेक्षा हो जाती है। प्लेटो स्त्री-पुरुष के केवल शारीरिक बनावट का ही अन्तर मानता है जो वस्तुतः गलत है। उसकी विवाह तथा परिवार नामक संस्था का अपमान है। पति पत्नी के सम्बन्ध यौन सम्बन्ध ही नहीं बल्कि आध्यात्मिक संबंध है। उसके साम्यवाद से समाज में अव्यवस्था उत्पन्न होगी।
- बहुसंख्यकों की शिक्षा का अभाव : प्लेटो की शिक्षा योजना भी अपूर्ण है तथा अव्यवहारिक है। शिक्षा की अवधि लम्बी है। 35 वर्ष की आयु तक केवल गिने चुने लोग ही शिक्षा पा सकेंगे। उसकी शिक्षा योजना व्यक्ति की अपेक्षा राज्य के हित को सर्वोपरि स्थान देती है। इस शिक्षा योजना में देश के बहुसंख्यक लोग अर्थात् उत्पादक वर्ग नहीं आते।
- कानून की उपेक्षा : प्लेटो के आदर्श राज्य में 'कानून' का कोई वर्णन नहीं है। शासन बिना कानून के केवल एक कल्पना ही प्रतीत होती है। संभवतः इस भूल को प्लेटो ने स्वयं अनुभव किया तथा अपने अगले ग्रन्थ में इसको स्थान दिया। अतः कानून का अभाव भी आदर्श राज्य का एक बड़ा दोष है।
- अधिनायकतंत्र का समर्थन : प्लेटो के आदर्श राज्य में दार्शनिक शासक की स्थिति बहुत कुछ एक तानाशाह जैसी ही है क्योंकि उस पर किसी कानून या परम्परा आदि का नियंत्रण नहीं है। उसके लिए जनमत को देखना आवश्यक नहीं अतः वह उसको पूरा निरंकुश बना डालता है, वह अपने आदर्श राज्य में परोक्ष या अपरोक्ष किसी भी रूप में प्रजातंत्र को स्थान नहीं देता है। आदर्श शासन में किसी न किसी प्रकार जनता का प्रतिनिधित्व आवश्यक है।
- सार्वजनिक शिक्षा का प्रबन्ध : 'रिपब्लिक' में वर्णित शिक्षा सिद्धांत में प्लेटो ने सिर्फ शासक व सैनिक के लिये ही शिक्षा की व्यवस्था की थी परन्तु 'लॉज' में वह सार्वजनिक शिक्षा को महत्व प्रदान करता है जो सभी वर्ग के लिए अनिवार्य है। प्लेटो के अनुसार "बच्चों को प्रारंभिक शिक्षा जन्म से ही देनी चाहिए। प्रथम तीन वर्षों में बच्चों को देखभाल मन्दिर में होगी, तत्पश्चात 6 वर्ष की आयु तक लड़के-लड़कियों को पृथक रूप से शारीरिक शिक्षा दी जायेगी, दस वर्ष की आयु के बाद उच्च शिक्षा प्रारंभ होगी तथा सोलह वर्ष की आयु तक गणित, साहित्य एवं संगीत का अभ्यास कराया जायेगा।
- मिश्रित संविधान की विशेषता : प्लेटो 'लॉज' प्रजातंत्र व राजतंत्र की विशेषताओं को लेकर एक मिश्रित सरकार व संविधान बनाना चाहता था, जिससे विधि तथा सरकार में संतुलन बना रहे। सेवाइन ने इस विषय में अपने शब्द इस प्रकार व्यक्त किये हैं कि मिश्रित राज्य के ही विभिन्न शक्तियों में संतुलन स्थापित किया जा सकता है।
अन्त में कहा जा सकता है कि प्लेटो के 'काल्पनिक आदर्श राज्य' की उड़ान से यह उपादर्श की काल्पनिक उड़ान महत्वपूर्ण है जिसका वर्णन प्लेटो ने “लाज" में किया है। आज का आधुनिक समाज प्लेटो द्वारा प्रतिपादित उपादर्श के सिद्धान्तों का ऋणी है।