कहानी का शीर्षक 'उसने कहा था ' सर्वाधिक सटीक है। इस शीर्षक में संज्ञा के बदले सर्वनाम है जो संज्ञा को जानने की उत्सुकता से परिपूर्ण है। साथ ही इस संदेश का पता नहीं है कि उसे क्या कहा गया था ? पूरी कहानी पढ़ने पर ही प्रतिदान पाने की आशा से रहित एकतरफा प्रेम की गहराई का पता चलता है। अतः शीर्षक व्यंजना प्रधान है साथ ही इसका रहस्य कहानी की समाप्ति के करीब खुलता है। मैं कोई अन्य शीर्षक सुझाने की आवश्यकता अनुभव नहीं करता।
उसने कहा था कहानी का केन्द्रीय भाव प्रेम है। किशोर वय के लड़का लड़की का प्रेम। लेकिन यह प्रेम जीवन भर दोनों के मन में रह जाता है। अतः यह महज आयी गयी घटना नहीं है। लड़की सूबेदारनी बन जाती है, सूबेदार हजारा सिंह से व्याह के बाद | मगर प्रेमी लहना को नहीं भूल पाती, संयोगवश पति, पुत्र और प्रेमी तीनों सेना में सैनिक बन जाते हैं। संयोगवश युद्ध पर जाते समय सूबेदार के आग्रह के कारण उसके घर जाता है। वहाँ सूबेदारनी ही उसे बुलाकर किशोरवय के प्रेम की याद दिलाती है, वह पति तथा पुत्र की रक्षा की भीख मांगती है। प्रेम एकतरफा उसका है। वह युद्ध भूमि में स्वयं घाव खाकर दोनों की रक्षा करता है। इस तरह वह प्रेमिका की याचना पूरी कर अपनी वचनबद्धता पूरी करता है।
बचपन से ही लहना के चरित्र में राग-तत्व प्रमुखतम रहा है। उसके जीवन में सर्वप्रथम इनका ही उदय होता है। दूकान पर जिस लड़की से भेंट होती है उससे वहीं बातें प्रारम्भ करता है, वही प्रश्न करता है कि उसकी सगाई हो गयी है या नहीं और लड़की की सगाई हो जाने का पता पाने के बाद वही गहरे तक हिल जाता है। इन घटनाओं का लड़की पर कोई प्रभाव (आंतरिक) नहीं पड़ता।
लहना सिंह के चरित्र का दूसरा महत्त्वपूर्ण पक्ष साहसिकता का है। समझदारी या प्रत्युत्पन्नमतित्व इसका ही अंग है। इस दूसरे पक्ष का भी परिचय बचपन में ही वह दे चुका होता है। एक दिन दही वाले की दुकान के पास एक तांगे का घोड़ा बिदक जाता है। लहना सिंह स्वयं घोड़े के पैरों के बीच जाकर भी साथ की उस लड़की को उठाकर दुकान पर खड़ा कर देता है। हजारा सिंह की पत्नी बन चुकी वह लड़की उस बात को भूल नहीं पाती और लहना को देखते ही उसे भरोसा हो आता है कि उसके पति और बेटे की रक्षा कर लेने में वह पूर्णतः सक्षम है। एक प्रेमिका के रूप में उसे इस विश्वास के अलावा और कुछ भी वह नहीं दे पाती। यह अवश्य है कि उसका यह विश्वास लहना के लिए काल बन जाता है।
लहना सिंह की वीरता की सबसे बड़ी पहचान तब होती है जब वह नकली लेफ्टिनेण्ट बने जर्मन को पहचान लेता है। जर्मन उसे सिगरेट देता है और इतने से ही वह समझ लेता है कि यह व्यक्ति लेफ्टिनेंट साहब हो नहीं सकता। फिर भी वह और अधिक आश्वस्त होने के लिए ऐसे-ऐसे प्रश्न करता है कि जर्मन भाँप तक नहीं पाता कि वह पहचान लिया गया है, परन्तु लहना अपनी आश्वस्ति लायक पर्याप्त प्रमाण पा जाता है।
लहना सिंह के चरित्र का मूल प्रेरक भाव राग है परन्तु स्वभाव से ही वीरधर्मी होने के कारण वह धैर्य और मर्यादा को कभी नहीं छोड़ता। बचपन में भी प्रेम पात्री की सगाई अन्यत्र हो जाने पर वह विचलित हो जाता है परन्तु पुनः उस कन्या से मिलने का कोई प्रयास नहीं करता। हजारा सिंह की पत्नी के रूप में उसे पाकर कभी मन में भी वह अन्यथा नहीं सोचता बल्कि अपने प्राणों के मूल्य पर भी उसके पति और पुत्र की पूर्ण रक्षा कर जाता है।