पर्यावरण विज्ञान के अन्तर्गत पर्यावरण को स्वस्थ रखने वाले ऊर्जा के परम्परागत स्रोतों को किस प्रकार वर्गीकृत किया जा सकता है?
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पर्यावरण विज्ञान के अन्तर्गत पर्यावरण को स्वस्थ रखने वाले ऊर्जा के परम्परागत स्रोतों को किस प्रकार वर्गीकृत किया जा सकता है?

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इन परम्परागत स्रोतों का प्रयोग हमारे पूर्वजों से होता चला आ रहा है। इनका प्रयोग शुरू करना उस समय हुआ था जब मनुष्य ने अपनी सूझ-बूझ से आग का आविष्कार कर लिया था । इन स्रोतों को फिर से नया अथवा नया रूप नहीं दिया जा सकता है, क्योंकि यह प्रकृति की देन जो भिन्न-भिन्न रूप में उपलब्ध है। मनुष्य द्वारा इनका अधिक शोषण होने के कारण अब ये समाप्ति के कगार पर पहुँचने वाले हैं

मुख्य रूप से ये तीन स्रोत हैं जिन का संक्षिप्त विवरण निम्नलिखित हैं -

1. कोयला (Coal) – यह अत्यन्त महत्वपूर्ण संसाधनों में से एक है और यह अत्यधिक गर्मी देता है । यह ऐसी ऊर्जा है जिसको फिर से स्थापित करके प्राप्त नहीं किया जा सकता है। इसका प्रयोग मुख्य रूप से बिजलीघर, कारखानों, उद्योगों और भट्ठों में होता है।

2. पेट्रोलियम ( Petroleum) - इस संसाधन के अन्तर्गत पेट्रोल, डीजल, मोबिल ऑयल और खनिज तेल आ जाते हैं। इन सभी का प्रयोग वाहनों, भट्ठियों और बिजलीघरों में होता है। आधुनिक तकनीक द्वारा हुए निरीक्षकों से यह आशा बँधी है कि इन निरीक्षकों के आधार पर 3000 मिलियन टन धरती में से और 1000 मिलियन टन समुद्र में पेट्रोलियम होने की सम्भावना है जिसको ठोस और कड़े प्रयासों से प्राप्त किया जा सकता है।

3. प्राकृतिक गैस (Natural Gas) - प्राकृतिक गैस का प्रयोग रोजमर्रा के छोटे से कार्यों से लेकर बड़े-बड़े उद्योग-धन्धों में किया जाता है। भविष्य में भी यह संसाधन उपलब्ध होता रहेगा। ये तीनों स्रोत पर्यावरण में प्रदूषण फैलाते हैं। इसलिए प्रयोग बहुत सीमित मात्रा में ही होना उचित है।

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