क्रांति करना, सीखना और प्रेम करना तीनों पृथक-पृथक प्रक्रियाएँ हैं या नहीं, कैसे? अथवा, जे कृष्णमूर्ति के निबंध 'शिक्षा का प्रतिपाद्य' लिखिए।
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क्रांति करना, सीखना और प्रेम करना तीनों पृथक-पृथक प्रक्रियाएँ हैं या नहीं, कैसे?  अथवा, जे कृष्णमूर्ति के निबंध 'शिक्षा का प्रतिपाद्य' लिखिए।

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यह संदर्भ प्रसिद्ध चिन्तक श्री जे. कृष्णकृति रचित निबंध से है। इस निबंध का शीर्षक है शिक्षा शिक्षा के विषय में उन्होंने जो विचार व्यक्त किये हैं वही इस निबंध का सार है। उनके अनुसार वर्तमान शिक्षा प्रणाली का एकमात्र लक्ष्य भौतिक उन्नति है। लोग कुछ विषय पढ़कर कोई अच्छी नौकरी पाना चाहते हैं या व्यवसाय में सफल होना चाहते हैं।

इसके अतिरिक्त जो लोग राजनीति आदि में हैं वे शक्ति चाहते हैं, सम्मान चाहते हैं और आराम चाहते हैं। इस तरह सब एक ही लक्ष्य को पाने के लिए प्रयत्नशील हैं। फलतः लोग दूसरे को अपना प्रतिस्पर्द्धा मानकर उसे पीछे छोड़ने के लिए धकिया रहे हैं। सबके भीतर एक ही आकांक्षा है- मैं सबसे बढ़कर रहूं. सब पर शासन या रोब रहे, सबसे अधिक सुख-सुविधा मेरे पास हो। इस तरह भौतिक समृद्धि पाना, समाज में अपने को सम्मानित समझना, सबसे ताकतवर कहलाना ही व्यक्ति की महत्वाकांक्षा है और उसके सारे प्रयत्नों की क्रिया रेखा दूसरे को धकिया कर आगे बढ़ने की है।

श्री जे. कृष्णकृति ने नूतन विश्व के निर्माण हेतु प्रेम का मार्ग सुझाया है। उनका मानना है कि आदमी अनिच्छा या आदतवश जो काम करता जाता है उससे अन्ततः उसे केवल ऊब, हास और मृत्यु प्राप्त होती है। अत: आदमी को इस बात पर गंभीरता से सोचना चाहिए कि कौन-सा काम वह प्रेम से कर सकता है। जिस काम में उसका मन रमें वह तन्मय होकर प्रेमपूर्ण उत्साह से कर सके, वही उसका प्रिय कार्य है। जब व्यक्ति काम का यंत्र बनने के बदले काम का अनुरागी हो जायेगा तो ऐसे लोगों से बनने वाले समाज से नूतन विश्व का निर्माण होगा।

यह सामान्य अनुभव की बात है कि हम चाहे स्कूल कॉलेज तक की पढ़ाई करें या नहीं करें दूसरे लोगों के अनुभव, बातचीत और जीवन के व्यापारों के अवलोकन से जीवन भर कुछ न कुछ सीखते रहते हैं।

इस शिया में हम अनुष्य करते है कि केबल एका गायक का सांसारिक जीवन व्यतीत करना जीवन का एक अंश है। सम्पूर्ण जीवन नहीं तब हमारे भीतर सम्पूर्ण जीवन का जानने की है। पर फैला मा और सटिक जीवन 7 के विदप का धान उता है उसे हट्र निद्रा की ज्यान पोसाकेला हे उस आधार पर तथा विवाह का बच्छ पेट

इस कॉति के कारण दिन्तन दीन जाता है कि कर्म एक नूतन जीवन की प्रणाली की जरूरत है। वह प्रणाली के से काम का चुनाव का काम करना जिसे हम प्रेस से का सत्र जब कर्म के प्रति प्रेम आव उदित होता है जीवन का म निष्कर्षः शिवा, कॉति और प्रेम में एक पुरक सके और तीनों से जीवन का पूर्णना प्राप्त होती है। अतः तीनों एक ही प्रक्रिया के अंग है, पृथक पृथक नहीं।

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