भाषायी दृष्टि से भाषा व बोली में कोई अन्तर नहीं है। दोनों का व्याकरण होता है। दोनों नियमबद्ध हैं। किसको भाषा कहा जाएगा और किसको बोली यह एक सामाजिक प्रश्न है, राजनैतिक प्रश्न है। सत्ताधारी व पैसे वाले लोग अक्सर जो बोली बोलते हैं वह भाषा कहलाने लगती है। उसी के व्याकरण व शब्दकोष लिखे जाते हैं। उसी में साहित्य लिखा जाता है। स्कूलों में शिषा का माध्यम बनकर वही बोली मानकीकृत भाषा बन बैठती है। उसी से मिलते-जुलते, बातचीत करने के अन्य तरीके उस 'भाषा की बोलियाँ' कहलाने लगती हैं।अतः हम कह सकते हैं कि भाषा और बोली के बीच अन्तर करना एक राजनीतिक पहलू है।