पद्मावत से गृहीत इस कड़बक में जायसी ने अपने एकाक्ष अर्थात काना होने का उल्लेख किया है तथा अनेक उपमाओं के सहारे यह बताने का प्रयास किया है कि उसमें एकाक्ष होने के कारण कोई हीन भावना नहीं है। कवि कहता है कि वह यद्यपि एक आँख वाला है किन्तु वह गुण सम्पन्न काव्य का रचयिता है। जो उसकी कविता सुनता है वही मुग्ध हो जाता है। कवि अत्यन्त गर्व के साथ कहता है कि ईश्वर ने उसे चाँद का अवतार बनाकर धरती पर भेजा है।
जिस तरह चाँद में काले धब्बे हैं उसी तरह वह भी काना है। लेकिन जिस तरह चाँद प्रकाश फैलाता है उसी तरह उसका कवि होना प्रकाशवान है। वह लोगों को आनन्द देता है और लोग उसे सम्मान देते हैं। यहाँ काव्य को प्रकाश और आँख को चाँद में प्राप्त कलंक कहा गया है। यद्यपि कवि एकाक्ष है लेकिन उसने संसार का इतना ज्ञान प्राप्त कर लिया है जितना दो आँखों वाले को भी दुर्लभ हैं। वह अपने को ताराओं में शुक्रतारा मानता है जिसकी अलग पहचान है और जो प्रात: कालीन प्रकाश की सूचना देने हेतु उदित होता है। कवि अपने आँख के कालापन को आम के ऊपरी भाग में होने वाले डाभ या चोप कहता है। यह दोष अनिवार्यतः आम में होता है लेकिन लोग उसकी ओर ध्यान न देकर आम के रस, स्वाद और सुगंध पर मुग्ध होते हैं। यदि आम में गुण न हो तो इस चोप को हटा देने पर भी कोई नहीं पूछेगा। समुद्र का पानी खारा है, इसीलिए वह अपार है उसके तल तक नहीं देखा जा सकता है।
शंकर ने जब त्रिशूल से सुमेरू पर्वत को नष्ट किया तभी वह सोने का बन सका और आकाश छूने लगा। सोना जब तक तपाये जाने वाले पात्र में रखकर तपाया नहीं जाता तब तक वह कच्चा रहता है । वह आभूषण बनाये जाने योग्य खरापन नहीं प्राप्त कर पाता है। अतः सोना को शुद्ध होने के लिए तपाया जाना जरूरी है। इस तरह कवि अनेक उपमानों के सहारे यह बतलाना चाहता है कि हर गुणवान वस्तु में थोड़ा अवगुण अवश्य पाया जाता है। लेकिन लोग गुण पर मुग्ध होकर अवगुण पर ध्यान नहीं देते। कवि के एक ही आँख है मगर वह दर्पण की तरह निर्मल हैं, वह रागद्वेष से परे है। मन किसी के लिए खोट नहीं है। अतः लोग उसके चरण छूते हैं और प्रेम से देखते हैं। निष्कर्षतः एक आँख की कमी का उसे कोई दुःख नहीं है।
इस तरह कवि ने प्रथम कड़बक में अपनी प्रशंसा की है और एकाक्षता को गौरवान्वित किया है।
दर्पण निर्मल होता है। वह व्यक्ति की सही तस्वीर दिखाता है। आँख की तरह कवि का मन भी निर्मल है। उसने उच्च कोटि के आध्यात्मिक काव्य की रचना की है। जो उसके निर्मल और उदात्त भावनाओं का प्रतीक है। इसकी कारण उसने अपनी एक आँख की तुलना दर्पण से की है।
अतः कवि काना होने को कलंक नहीं मानता। काँच का तात्पर्य है कच्चा और कंचन का अर्थ है सोना। यहाँ अभिप्राय यह है कि जबतक सोना तपाये जाने वाले पात्र में रखकर तपाया नहीं जाता तब तक वह कच्चा रहता है अर्थात उसमें मिलावट रहती है। तपाये जाने पर ही वह शुद्ध या खरा होता है।