समाचार-पत्र मत व्यक्त करने का प्रबल माध्यम है। यह निर्भीक जनतन्त्र की बुलन्द वाणी है, अन्यायी शासक के विरोध में उठी हुई चेतना की प्रज्जवलित वर्तिका है, समाज की कुरीतियों का पर्दाफाश है तथा विश्व के क्रिया-कलापों को प्रतिबिम्बित करनेवाला दर्पण है। विचारों के प्रसार का, वस्तुओं के प्रचार का, व्यक्ति के विचार का, या यों कहें किसी भी क्षेत्र में प्रसार का इससे सशक्त और व्यापक माध्यम अन्य नहीं। चुनाव के समय तो इसका स्वर बहुत स्पष्ट हो जाता है। आजकल इसका सत्कार काफी बढ़ गया है। कड़ा-से-कड़ा शासन भी समाचार पत्र की उपेक्षा नहीं कर सकता। जिस किसी देश में इसे दबाने की चेष्टा की गई, वहीं प्रयत्न असफल सिद्ध हुआ। अधिनायकत्व के आधार पर शासन चलाने वाले देश समाचार पत्रों पर प्रबल नियन्त्रण रखते हैं। आपात काल में अथवा राष्ट्रीय संकट के अवसर पर समाचार पत्रों पर प्रबल नियन्त्रण कर दिया जाता है। इन प्रवृत्तियों पर अंकुश रखने के लिए समाचार पत्रों के संचालक अब संगठित होने लगे हैं।
कहा जाता है कि आधुनिक युग प्रचार का युग है। विज्ञापन ने विज्ञान का रूप ले लिया है। विज्ञापन की आधुनिक प्रणाली इतनी कारगर सिद्ध हुई है कि कोई भी सफलता चाहने वाला व्यवसायी समाचार पत्रों में अपने सामान का विज्ञापन किये बिना नहीं रहता। चाय वाले, बिस्कुट वाले, घड़ी वाले, साबुन वाले, दवा वाले कहाँ तक कहा जाय, तम्बाकू वाले भी अपने सामान के गुणगान के लिए समाचार पत्र का दामन पकड़ते हैं। किसी वस्तु या व्यापार को हजारों लाखों निगाहों के सामने एकाएक रख देने का एकमात्र साधन समाचार पत्र है।
पढ़े लिखे लोगों के मनोरंजन का कार्य भी समाचार पत्र द्वारा सम्पन्न होता है। ऐसे अनेक लोगों का उल्लेख मिलता है जिन्हें समाचार पत्र नहीं मिलने के कारण बड़ी बेचैनी हो जाती है। खेल में प्रेम रखने वाले लोग अखबारों में स्पोर्ट्स कॉलम ढूँढते हैं, सिनेमा से सम्बन्ध रखने वाले फिल्मी कोना ढूढ़ते हैं। यों कहिए कि विभिन्न रुचियों के लिए अखबारों में पूरा ख्याल रखा जाता है। अब तो समाचार-पत्र अनेक खण्डों में बँटे रहते हैं। विभिन्न रुचि के पाठक भिन्न-भिन्न अंगों को पढ़कर अपना मनोरंजन करते हैं। यह मनोरंजन ज्ञान संवर्द्धन का हेतु है, जानकारी बढ़ाने का साधन है। मन को अत्यन्त सहज ढंग से प्रभावित और प्रसन्न बनाकर किसी बात का सिक्का जमा देना ही मनोरंजन का काम होता है। मनोरंजन में विविधता और नीति की बातें रहती हैं। हम देश-विदेश की खबरें जानना चाहते हैं, विज्ञान के बढ़ते चरण से परिचित होना चाहते हैं। उत्सुकता और जिज्ञासा को गति देने तथा तृप्त करने में समाचार-पत्रों का बड़ा महत्वपूर्ण योगदान रहता है। चाँद पर बसने के प्रयास हो रहे हैं, शान्ति की लहरें वेग से बढ़ रही हैं तथा युद्ध के घिनौने नारे लगाये जा रहे हैं। ऐसी अनेक बातों का पता घर बैठे ही समाचार-पत्र से मिल जाता है।
समाचार पत्रों की अनेक कोटियाँ होती हैं-कोई दैनिक होता है, कोई साप्ताहिक, कोई पाक्षिक होता है, कोई मासिक तथा कोई वर्ष में एक बार ही प्रकाशित होता है। हमारी तथा अन्य देशों की आर्थिक व्यवस्था कैसी है, राजनैतिक स्थिति कैसी है, सांस्कृतिक गतिविधियाँ कैसी हैं आदि का ज्ञान हमें इन्हीं से होता है। साहित्यिक पत्र-पत्रिकाएँ भी सामान्य रूप से समाचार पत्रों की गणना में ही आयेंगी। इसी के द्वारा देश की पूरी सांस्कृतिक गतिविधि से हम पूर्णरूपेण परिचित हो पाते हैं।
किन्तु विज्ञापन का प्रबल माध्यम होने के कारण अनिष्टकारी विज्ञापन द्वारा समाचार-पत्र समाज की बहुत बड़ी हानि भी कर सकता है। बहुत से झूठे विज्ञापनों के फेर में पड़ कर अनेक लोगों ने बड़ा नुकसान उठाया है। अनैतिक आख्यानों तथा कथाओं द्वारा समाचार पत्र युवकों के मन पर अकल्याणकारी प्रभाव डाल सकते हैं। साम्प्रदायिक मनोवृत्ति को उभाड़ने वाला समाचार-पत्र तो राष्ट्रद्रोही ही होता है। वह सम्पूर्ण राष्ट्र के जीवन को दूषित कर देता है।
इतना होने पर भी समाचार पत्र राष्ट्रीय जीवन का एक उपयोगी अंग है। इसी के सहारे हम अन्तर्राष्ट्रीय सम्बन्ध स्थापित करते हैं। हमारी संस्कृति तथा कला का विज्ञापन समाचार पत्रों द्वारा सम्पन्न होता है। हम जातीय जीवन की गौरवगाथा को समाचार-पत्रों द्वारा ही व्यक्त करते हैं। संसार के समुन्नत देश अपनी सभ्यता का प्रकाश समाचार-पत्रों द्वारा ही फैलाते हैं। समाचार-पत्रों को चाहिए कि वे पुष्ट, स्वस्थ और विवेकशील विचारों को फैलाने का प्रयास करें। यह नवयुग की नवीन शक्ति है और इसका प्रयोग पापपूर्ण विचारों के प्रसारण में न करके, पवित्रता, सद्भाव और समाजहित के लिए करना चाहिए।