वस्तुत: संविधान निर्माताओं ने शांतिकाल की स्थिति में शासन व्यवस्था हेतु हमें वाताल, परिपूर्ण संतुष्टि प्रदायक एवं अदभुत संविधान प्रदान किया तथा साथ ही साथ परिस्थितियों में मुकाबला करने के लिए इसे आंशिक नम्य एवं लोचशील बनाया जिससे देश एवं समाज का कास संभव हो सके। दूसरी ओर संविधान निर्माताओं का विचार था कि देश में असाधारण स्थितियां उत्पन्न हो सकती हैं p और संविधान की सामान्य कार्य योजना विफल हो सकती है।
इमाने यही समझा की ऐसे संकट की घड़ी में इस व्यवस्था को बदलने के लिए संविधान में
उपबंध होने चाहिए। संकट के समय संघीय शक्ति का विस्तार होना चाहिए क्योंकि देश को ट के समय अपने वजूद को बनाए रखने के लिए मिल-जुलकर प्रयास करना होगा। सभी क्तियों का केंद्रीकरण हो जाएगा परंतु जैसे ही संकट की स्थिति समाप्त हो जाएगी तुरंत संविधान सामान्य उपबंध प्रभावी हो जाएंगे।
संक्षेप में, संविधान के भाग-18 में अनुच्छेद 352-360 के अंतर्गत तीन प्रकार की आपात -तियों की परिकल्पना की गई है
1. युद्ध या बाह्य आक्रमण या सशस्त्र विद्रोह के कारण अनुच्छेद 352 के अधीन राष्ट्रीय आपात;
2. राज्य विशेष में संवैधानिक तंत्र के विफल हो जाने की दशा में संविधान के अनुच्छेद के अंतर्गत राज्य
आपात या राष्ट्रपति शासन; 3. राष्ट्र के वित्तीय स्थायित्व के संकट की स्थिति में अनुच्छेद 360 के अंतर्गत वित्तीय आपात संविधान के अनुच्छेद 352 में व्यवस्था थी कि यदि राष्ट्रपति को अनुभव हो कि युद्ध, बाहरी मण या आंतरिक अशांति के कारण भारत या उसके किसी भाग की शांति या व्यवस्था नष्ट का भय है तो यथार्थ रूप में इस प्रकार की परिस्थिति उत्पन्न होने पर राष्ट्रपति राष्ट्रीय आपात उद्घोषणा कर सकता था। संसद की स्वीकृति के बिना भी यह दो माह तक लागू रहती और द से स्वीकृति हो जाने पर शासन जब तक चाहे उसे लागू रख सकता था। 44वें संवैधानिक धन द्वारा उपरोक्त व्यवस्था में परिवर्तन किया गया ताकि इन संकटकालीन शक्तियों का योग न किया जा सके। वर्तमान स्थिति के अनुसार राष्ट्रपति द्वारा अनुच्छेद 352 के अंतर्गत पातकाल तभी घोषित किया जा सकेगा जब मंत्रिमण्डल लिखित रूप से ऐसा परामर्श राष्ट्रपति को दे।
इस प्रकार का आपातकाल अब युद्ध, बाह्य आक्रमण या सशस्त्र विद्रोह होने या इस प्रकार आशंका होने पर ही घोषित किया जा सकेगा. आंतरिक अशांति होने पर नहीं, राष्ट्रपति द्वारा घोषणा किए जाने के एक माह के भीतर संसद के विशेष बहुमत से इसकी स्वीकृति अनिवार्य होगी। उल्लेखनीय है कि एक बार में इसकी अवधि । वर्ष एवं अधिकतम 3 वर्ष तक बढ़ाई जा सकती है। लोकसभा में उपस्थित एवं मतदान देने वाले सदस्यों के साधारण बहुमत से आपातकाल की घोषणा समाप्त की जा सकती है, संविधान में किए गए 38वें संवैधानिक संशोधन को भी रद्द कर दिया गया है, जिसमें व्यवस्था की गई थी कि राष्ट्रपति द्वारा 352वें अनुच्छेद के अंतर्गत की गई आपात की उद्घोषणा को न्यायालय में चुनौती नहीं दी जा सकती। 44वें संविधान संशोधन द्वारा इस संकटकालीन घोषणा को न्याय योग्य बना दिया गया है अर्थात सम्बद्ध घोषणा को न्यायालय में चुनौती दी जा सकती है।