29 जुलाई 2020 को आई नई शिक्षा नीति (एनईपी) देश-दुनिया की बदलती हुई जरूरतों के मद्देनजर शिक्षा के क्षेत्र में एक महत्वपूर्ण बदलाव है। पिछली एनईपी 1986 में बनी थी, जिसमें 1992 में मामूली संशोधन किया गया था। एनईपी की एक बड़ी विशेषता यह है कि यह एक लोकतांत्रिक नीति है। इस नीति को बनाने के लिए देश के कोने-कोने से सभी वर्गों के लोगों की राय ली गई। शायद पहली बार ऐसा हुआ है कि शिक्षा नीति बनाने के लिए देश की 2.5 लाख ग्राम पंचायतों, 6600 ब्लॉक और 676 जिलों से सलाह ली गई । शिक्षाविदों, अध्यापकों, जनप्रतिनिधियों, अभिभावकों और छात्रों तक के दो लाख से अधिक सुझावों पर मंथन कर जन आकांक्षाओं के अनुरूप एनईपी को साकार किया गया। एनईपी 2020 की घोषणा के साथ ही मानव संसाधन विकास मंत्रालय का नाम बदलकर शिक्षा मंत्रालय कर दिया गया है। यह सर्वथा उचित है।
स्कूली शिक्षा के संदर्भ में एनईपी की सबसे क्रांतिकारी विशेषता है कि कम से कम ग्रेड 5 तक की पढ़ाई स्थानीय या क्षेत्रीय भाषा में होगी, जिसे ग्रेड 8 तक भी बढ़ाया जा सकता है। अंग्रेजी अब सिर्फ एक विषय के तौर पर पढ़ाई जाएगी। शैक्षणिक मनोविज्ञान और यूनेस्को की 2008 की रिपोर्ट के अनुसार मातृभाषा में संप्रेषण और संज्ञान सहज एवं शीघ्र हो जाता है, जो पूर्ण संज्ञानात्मक विकास के लिए जरूरी है। यह भारतीय भाषाओं और संस्कृति की मजबूती की दिशा में भी एक बड़ा कदम साबित होगा। इसी तरह स्कूलों में शैक्षणिक पाठ्यक्रम, पाठ्येतर गतिविधियों और व्यावसायिक शिक्षा के बीच अंतर नहीं किया जाएगा, बल्कि व्यावसायिक शिक्षा को इसका अभिन्न अंग बनाया जाएगा। कोडिंग जैसे आधुनिकतम वोकेशनल प्रशिक्षण छठी क्लास से ही शुरू किए जाएंगे। वोकेशनल शिक्षा के अन्य उच्चतर रूप कॉलेज में भी मौजूद होंगे। यह युवाओं के लिए स्वरोजगार और उद्यम की दिशा में बहुत उपयोगी सिद्ध होगा।
एनईपी के तहत स्कूली शिक्षा में स्ट्रीम का बंटवारा जड़बद्ध नहीं होगा। अब विज्ञान या कॉमर्स के विद्यार्थी मानविकी के विषय भी पढ़ सकेंगे। यह व्यवस्था स्नातक स्तर पर भी लागू होगी। अमेरिका और यूरोप के विश्वविद्यालयों में यह बहुत पहले से है। यह छात्रों के सर्वांगीण विकास में बहुत लाभदायक है।
एनईपी की एक अन्य विशेषता है एससी, एसटी, ओबीसी, लड़कियों, दिव्यांगों और गरीब-वंचित तबके के लिए विशेष प्रावधान है। सार्वजनिक के अलावा निजी क्षेत्रों के उच्च शिक्षा संस्थानों में भी इन तबकों के लिए छात्रवृत्ति उपलब्ध हो, इसके लिए प्रयास किए जाएंगे।
उच्च शिक्षा के स्तर पर एनईपी कई नई संभावनाओं के साथ आई है। स्ट्रीम का लचीलापन अर्थात् विज्ञान, कॉमर्स या मानविकी के छात्रों को एक-दूसरे के विषयों को पढ़ने की छूट अथवा वोकेशनल शिक्षा के समावेश के साथ-साथ बैचलर प्रोग्राम की एक बड़ी विशेषता होगी मल्टी-एंट्री और मल्टी-एग्जिट | अभी बैचलर डिग्री तीन साल की होती है। अगर किन्हीं कारणों से छात्र को बीच में ही पढ़ाई छोड़नी पड़े तो सारा समय, परिश्रम और धन बेकार चला जाता है। अब जरूरत पड़ने पर एक या दो साल की पढ़ाई के बाद भी छात्र को सर्टिफिकेट या डिप्लोमा दिया जाएगा। छात्र वापस आकर बची पढ़ाई पूरी कर सकता है। तीन साल की पढ़ाई के बाद बैचलर डिग्री मिलेगी। एनईपी में चार वर्षीय बैचलर का भी प्रावधान है जो बैचलर विद रिसर्च डिग्री होगी। यह उनके लिए जरूरी है जो आगे एम० ए० या पीएचडी करना चाहते हैं । अमेरिका, हैं।
यूरोप, जापान आदि विकसित देशों में इस तरह की व्यवस्था के सकारात्मक परिणाम हुए एनईपी में यह आजादी भी होगी कि छात्र कोई कोर्स बीच में छोड़कर दूसरे कोर्स में दाखिला ले सकता है। इसी संदर्भ में एक अभिनव प्रावधान है एकेडेमिक बैंक ऑफ क्रेडिट्स का। यह एक तरह का डिजिटल क्रेडिट बैंक होगा, जिसके द्वारा छात्रों द्वारा किसी एक प्रोग्राम या संस्थान में प्राप्त क्रेडिट को दूसरे प्रोग्राम या संस्थानों में स्थानांतरित किया जाएगा। इसके अलावा एकल विषय संस्थानों जैसे लॉ, एग्रीकल्चर विवि आदि को समाप्त कर बहुविषयक संस्थानों में बदला जाएगा। यहाँ तक कि इंजीनियरिंग संस्थान भी कला और मानविकी का अधिकाधिक समन्वय करते हुए समग्र और बहुविषयक दिशा में अग्रसर होंगे।
एनईपी का एक अन्य प्रमुख बिंदु है निजी संस्थानों में फीस की मनमानी बंद करने के लिए कैपिंग का प्रावधान। उच्च शिक्षा के लिए अब एक सिंगल रेगुलेटर 'भारत उच्च शिक्षा आयोग' (एचईसीआई) का गठन किया जाएगा, जिसमें यूजीसी समेत अन्य निकायों का विलय हो जाएगा। इससे उच्च शिक्षा के संदर्भ में एक समन्वित और समग्र नीति बनाने और लक्ष्य निर्धारित करने में आसानी होगी। देश को उच्च शिक्षा की वैश्विक शक्ति के रूप में स्थापित करने के लिए उच्च शिक्षा में एक मजबूत शोध- अनुसंधान संस्कृति और क्षमता को बढ़ावा देने का भी प्रस्ताव है। इसके लिए एक शीर्ष निकाय के रूप में नेशनल रिसर्च फाउंडेशन की स्थापना की जाएगी। इसका उद्देश्य विश्वविद्यालयों के माध्यम से शोध की संस्कृति को सक्षम बनाना होगा। एनईपी के व्यापक लक्ष्यों को पूरा करने के लिए ज्यादा धन की जरूरत होगी। इसलिए जीडीपी का 6 प्रतिशत शिक्षा में लगाने का लक्ष्य रखा गया है।
नई शिक्षा नीति आने में जितना वक्त लगा, उसके क्रियान्वयन में संभवतः उतनी देरी न हो। सरकार ने इसे लेकर एक विस्तृत रोडमैप तैयार किया है, जिसके तहत 2024 तक नीति के ज्यादातर प्रावधानों को लागू कर दिया जाएगा। मंत्रालय के नाम में बदलाव सहित स्कूली शिक्षा में प्री-प्राइमरी को शामिल करने जैसे प्रावधानों को इसी साल लागू करने का प्रस्ताव है।
पूरी नीति पर अमल के लिए 2035 तक की समय सीमा तय की गई है, जिसमें उच्च शिक्षा की सकल नामांकन दर (जीईआर) को बढ़ाकर 50 फीसद तक पहुँचाने का लक्ष्य रखा गया है जो अभी 26 फीसद है। शिक्षकों के शिक्षण और प्रशिक्षण का सौ फीसद लक्ष्य हासिल करने के लिए भी 2035 की समय सीमा तय की गई है।
नई शिक्षा नीति को भले ही अब मंजूरी मिली हो, लेकिन पाठ्यक्रम में बदलाव का काम पहले ही शुरू हो चुका है। फिलहाल नेशनल कैरीकुलम फ्रेमवर्क (एनसीएफ) को तैयार किया जा रहा है, जिसे इस साल के अंत तक पूरा करने का लक्ष्य रखा गया है। इसके तहत पाठ्यक्रम की कोर विषय वस्तु की पहचान करना और कौन सी ऐसी विषय वस्तु जिसे हटाया जा सकता है, उसे पहचानना है। नीति को लागू करने का सबसे पेचीदा पहलू स्कूलों के लिए नया पाठ्यक्रम तैयार करना है। यही वजह है कि सरकार भी इसे लेकर पूरी सतर्कता के साथ आगे बढ़ने की रणनीति पर काम कर रही है।