पुस्तकालय पर लेख लिखें। Pustakalay Per Lekh Likhen.
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पुस्तकालय पर लेख लिखें। Pustakalay Per Lekh Likhen.

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पुस्तकालय का सन्धि विच्छेद है पुस्तक + आलय तथा सरलार्थ है - पुस्तक का घर। किन्तु यह इसका अतिसाधारण अर्थ है। इससे इसकी विशिष्टता और महत्ता का थोड़ा भी संकेत नहीं मिलता। पुस्तकालय वह मन्दिर है जिसमें विद्या देवी सरस्वती का अधिवास है, वह तीर्थराज है जहाँ संसार के सर्वोत्तम ज्ञान और विचारों का सम्मिलन होता है। ऐसा पुष्प-सरोवर है जिसमें हर क्षण ज्ञान के सुरभि सम्पन्न कमल खिलते हैं।

हमारे ऋषियों ने कहा है 'स्वाध्यायान्मा प्रमद', अर्थात् स्वाध्याय में प्रमाद न करो। देववाणी कहती है – 'यावज्जीवमंधीते विप्रः' अर्थात् ब्राह्मण वह है जिसका सारा जीवन अध्ययन में रमा रहे । पुस्तकधारिणी सरस्वती की सतत् समर्चना के लिए पुस्तक से बढ़कर और कोई साधन नहीं है। पुस्तक पूर्णिमा की दुग्धधवल रात्रि है, जिसके द्वारा अज्ञान का अन्धकार दूर होता है। ग्रन्थ हमारे सबसे बड़े मित्र हैं जिनसे हम हर घड़ी वार्तालाप कर सकते हैं, परामर्श ले सकते हैं, अपने मार्ग का निर्धारण कर सकते हैं तथा अपने चित्त का परिष्कार कर सकते हैं। बड़े से बड़े कुबेर पुत्र के लिए भी हर प्रकार की पुस्तकें जुटाना सम्भव नहीं। अतः सबके लिए पुस्तकालय एकमात्र शरण है। विद्यालय हमें तैरना सिखलाते हैं, ज्ञान के पानी में उतरने का तरीका बताते हैं। पुस्तकालय वह विशाल महासागर है जहाँ हम गोते लगाकर ज्ञान के दुर्लभ मूल्यवान मोती प्राप्त कर सकते हैं। अतः इसका महत्त्व निर्विवाद है। -

पुस्तकालय से लाभ ही लाभ है। आप पुस्तकालय में चले जायें और चाहें तो गोस्वामी तुलसीदास के 'रामचरितमानस' के भरत की 'भायप भगति' पर मुग्ध हों या शेक्सपियर के विश्वासघात पर क्रुद्ध । राजनीति, दर्शन, विज्ञान, साहित्य - जिस विषय पर आप चाहें, पुस्तकें प्राप्त करें और अध्ययन करें। पुस्तकालय में बैठकर संसार के किसी देश की संस्कृति एवं सभ्यता का ज्ञान अर्जित करें तथा उनके मोड़ों और उनके ह्रास विकास के कारणों की छानबीन करें। यह हमारे वैयक्तिक उन्नयन का पथ प्रशस्त करता है, साथ ही साथ सामाजिक जीवन के विकास का भी रहस्य - पट खोलता है। इसमें सारा विज्ञान और सारी संस्कृति का ज्ञान भरा रहता है। यही कारण है कि बाबर से मार्क्स तक इसके श्रेष्ठ प्रेमी रहे। यही कारण है कि इसको प्यार करने , पर विरोधी एक भी नहीं। पुस्तकालय चाहे विद्यालयीय हो या विश्वविद्यालयीय, वैयक्तिक हो या सामूहिक, राजकीय हो या अराजकीय, चल हो या अचल इसके संचालन में बड़ी सतर्कता बरतने की आवश्यकता है। हम इसमें नयी-नयी ज्ञान-सरिता का जल नये-नये ग्रन्थों द्वारा भरते रहें, तभी यह हमारे लिए अधिक हितवत हो सकता है। संसार का सबसे बड़ा पुस्तकालय सोवियत संघ में कीब का राष्ट्रीय पुस्तकालय है जिसमें पुस्तकों की संख्या 70,97,000 है, जबकि हमारे यहाँ के राष्ट्रीय पुस्तकालय कलकत्ता में पुस्तकों की संख्या केवल दस लाख है। हमारे देश के पिछड़े होने का यही कारण है कि अन्य उन्नत देशों के मुकाबले हमारे पुस्तकालय काफी पिछड़े हैं। हमारे यहाँ पुस्तकालय - प्रेमी सबसे कम हैं। हमें यह स्थिति समाप्त करने पर ही उन्नति प्राप्त होगी अन्यथा नहीं। पुस्तकालय विश्व का स्नायु केन्द्र है। यह वह गंगोत्री है जहाँ ज्ञान की गंगा अहर्निश प्रवाहित होती रहती है और वह तपोवन है जहाँ विवेक के बन्द नेत्र खुले रहते हैं। अतः हम अपनी सतत् निष्ठा एवं सतर्कता से अपने देश में जितना शीघ्र समृद्ध पुस्तकालयों का निर्माण कर सकेंगे उतना ही शीघ्र हम विद्या और बुद्धि के महासागर पर स्वत्व स्थापित कर सकेंगे।

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