बच्चों की खगोलीय अवधारणाओं का स्वरूप पर्यावरणीय अध्ययन से अप्रत्यक्ष रूप से सम्बन्धित है। जब बच्चे रात में आकाश की ओर दृष्टि डालते हैं, आकाश, चन्द्रमा और तारों को देखते हैं तो उनके मन में विभिन्न अवधारणाओं का जन्म होता है; जैसे-चन्द्रमा को देखकर ये सोचना कि उस पर जो दाग-धब्बे हैं उन्हें मिटाने के लिये हम क्या कर सकते हैं, चलते हुए तारों को कैसे रोका जा सकता है तथा आसपास में पल-प्रतिपल परिवर्तन क्यों होते रहते हैं आदि।
बच्चों की इन अवधारणाओं से सम्बन्धित प्रश्नों का उत्तर हम उनके स्तर के अनुरूप देते हैं। प्राथमिक स्तर का कक्षा 1 या दो का छात्र इस प्रकार की अवधारणा बनाता है कि चन्द्रमा प्रतिदिन टूटता है तथा जुड़ता है, क्योंकि वह प्रतिदिन उसके आकार को कम होता है और बढ़ता देखता है तो उसे इसकी वास्तविकता से परिचित कराना चाहिये कि ऐसा पृथ्वी और चन्द्रमा की घूर्णन गति के कारण होता है। इसी प्रकार बच्चों की सूर्यग्रहण एवं चन्द्रग्रहण की खगोलीय अवधारणाओं को भी वैज्ञानिक रूप दिया जा सकता है। इसके लिये बच्चों की अवधारणाओं पर शोध किये जाने चाहिये। इन शोधों के निष्कर्ष के आधार पर बच्चे को खगोलीय ज्ञान प्रदान करना चाहिये ।
वस्तुतः अनुसन्धान या शोध किसी नवीन वस्तु अथवा ज्ञान के कुछ नवीन सिद्धान्तों के आधार पर ही कार्य करता है। इस कारण यह प्रक्रिया सरल एवं बोधगम्य रूप धारण कर रही है। इसके अतिरिक्त शोध एक वैचारिक प्रक्रिया है जिसका मुख्य उद्देश्य मानव समाज के ज्ञान को विकसित तथा परिमार्जित करके उसको मानव की सेवा में समर्पित करना है। अतः बच्चों के खगोलीय ज्ञान के विकास के लिये भी शोध करना आवश्यक है ।