भारतीय संविधान में वर्णित मौलिक अधिकारों का वर्णन करें। Bhartiya Sanvidhan Mein Varnit Maulik Adhikaron Ka Varnan Karen.
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भारतीय संविधान में वर्णित मौलिक अधिकारों का वर्णन करें। Bhartiya Sanvidhan Mein Varnit Maulik Adhikaron Ka Varnan Karen. 

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भारतीय नागरिकों के अधिकार निम्न हैं।

( 1 ) समता का अधिकार (2) स्वतंत्रता का अधिकार, (3) शोषण के विरूद्ध अधिकार, (4) धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार, (5) सांस्कृतिक तथा शिक्षा संबंधी अधिकारी (6) संवैधानिक उपचारों का अधिकार।

1. समता का अधिकार मूल अधिकारों की सूची में इसे प्राथमिकता प्रदान की गई है। इसका वर्णन संविधान के 14 वीं से 18वीं धाराओं में है। फिर इसको पाँच अलग-अलग विभागों में विभक्त किया गया है वे ये हैं।

( क ) कानून के समक्ष समता: 14वीं धारा के अनुसार सभी नागरिकों को कानून की नजर में समता और कानून का समान संरक्षण प्रदान किया गया है। कानून की नजर में सभी नागरिकों पर एक ही प्रकार के कानून लागू होंगे तथा धर्म, जाति, लिंग आदि के आधार पर किसी व्यक्ति को विधि के समक्ष कोई सुविधा नहीं दी जायेगी और कानून सभी नागरिकों को समान रूप से संरक्षित करेगा। इस तरह यहाँ इंगलैंण्ड की तरह विधि के शासन की स्थापना हुई।

( ख ) सामाजिक समता: 15वीं धारा के अनुसार कोई भी व्यक्ति अपने धर्म, जाति, लिंग, वंश आदि के आधार पर होटल, दुकान, भोजनालय, सार्वजनिक मनोरंजन के स्थानों पूर्णत: अथवा आंशिक रूप से सरकारी सहायता प्राप्त कुँओं, तालाबों, स्नान घाटों, सड़कों, पार्कों तथा अन्य सार्वजनिक उपयोग के स्थानों पर जाने से वंचित नहीं किया जायेगा।

(ग) अस्पृश्यता का अन्त: 17वीं धारा के अनुसार अस्पृश्यता का सदा के लिए अन्त कर दिया गया है तथा अस्पृश्यता के व्यवहार को दण्डनीय तथा निषिद्ध घोषित कर दिया गया है। (घ) सार्वजनिक पदों की प्राप्ति में अवसर की समानता : 16वीं धारा के अनुसार सभी नागरिकों को राज्य के अन्तर्गत सभी नौकरियों एवं सार्वजनिक सेवा के पदों की प्राप्ति का समान अधिकार दिया गया है। धर्म, जाति वंश, लिंग, जन्म स्थान आदि के आधार पर विभेद नहीं किया जायेगा। (ङ) उपाधियों का अन्त: 18वीं धारा के अनुसार सेना तथा विद्या सम्बन्धी उपाधियों को छोड़कर अन्य सभी उपाधियों का अन्त कर दिया गया है।

2. स्वतंत्रता का अधिकार संविधान की 19वीं से 22वीं धाराओं में स्वतंत्रता के अधिकार प्रदान किए गए हैं। 19वीं धारा सबसे महत्वपूर्ण है। इस धारा के द्वारा 'सप्त अधिकार' नागरिकों को दिया गया है, (क) भाषण और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता, (ख) शांतिपूर्ण एवं बिना हथियार एकत्र होने की स्वतंत्रता (ग) संघ अथवा संस्था के निर्माण की स्वतंत्रता (घ) भारत में सर्वत्र अवाध संचार-विचरण की स्वतंत्रता, (ङ) भारत के किसी भाग में निवास करने की स्वतंत्रता (च) सम्पत्ति- अर्जन, धारण और व्यय करने की स्वतंत्रता और (छ) जीविका-अर्जन करने की स्वतंत्रता। इन ‘सप्त अधिकारों के अतिरिक्त इन्हें अन्य अधिकार भी दिए गये हैं, जैसे अपराधी के लिए विधि सम्मत दण्ड की व्यवस्था, जीवन तथा दैनिक स्वतंत्रता की रक्षा और बन्दीकरण और विरोध से संरक्षण |

3. शोषण के विरूद्ध अधिकार मनुष्य के द्वारा मनुष्य के शोषण के अधिकार को संविधान द्वारा समाप्त कर दिया गया है। इस प्रकार का अधिकार 22वीं से 24वीं धाराओं के द्वारा प्रदत्त किया गया है। जैसे (क) बेकारी प्रथा का अन्त और मनुष्यों के क्रय-विक्रय पर रोक लगा दिया गया है। संविधान के द्वारा ये कुकार्य अपराध घोषित कर दिए गए हैं। ( ख ) बच्चों की रक्षा का अधिकार : 14 वर्ष से कम उम्र वाले बच्चों से खतरनाक काम लिया जाना अपराध करार दिया गया है। इन बच्चों से कारखाने या खान में काम नहीं लिया जा सकता है। वस्तुतः शोषण के विरूद्ध का वास्तविक उद्देश्य एक सामाजिक लोकतंत्र की स्थापना करना है।

4. धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार संविधान की धारा 24 से 28 में नागरिकों को धार्मिक अधिकार की स्वतंत्रता दी गई है। देश के सभी नागरिकों को अपनी इच्छानुसार किसी भी धर्म में विश्वास करने का अधिकार दिया गया है। राज्य इसमें हस्तक्षेप नहीं कर सकता। राज्य न तो धार्मिक शिक्षा का प्रबन्ध कर सकता है और न किसी धर्म को आर्थिक सहायता ही प्रदान कर सकता है।

5. सांस्कृतिक तथा शिक्षा संबंधी अधिकार संविधान की दो धारायें 29 और 30 के अनुसार नागरिकों को अपनी संस्कृति और भाषा को विकसित एवं संरक्षित करने का अधिकार प्राप्त है। 29वीं धारा के अनुसार सभी अल्पसंख्यकों को अपनी भाषा, लिपि, साहित्य और संस्कृति को बनाए रखने तथा विकसित करने का अधिकार है। 30वीं धारा के अनुसार सभी अल्पसंख्यक वर्गों को अपनी रूचि की शिक्षण संस्थानों की स्थापना तथा उनका समुचित प्रबन्ध करने का अधिकार राज्य धर्म अथवा भाषा के आधार पर सहायता प्रदान करने में कोई भेद-भाव नहीं बरतेगा।

6. संवैधानिक उपचारों का अधिकार संविधान की 32वीं धारा के अनुसार नागरिकों को संवैधानिक उपचारों का भी अधिकार दिया गया है। इसके अनुसार अगर कोई व्यक्ति या संस्था नागरिकों के मूल अधिकारों का अपहरण करता है तो वह अपने उस अधिकार की रक्षार्थ न्यायालय की शरण ले सकता है। न्यायालय इन अधिकारों की रक्षार्थ तरह-तरह के आज्ञा-पत्र, निर्देश, आदेश या लेख जारी कर सकता है। इन लेखों का रूप बन्दी प्रत्यक्षीकरण, परमादेश अधिकार- पृच्छा और उत्प्रेक्षण इत्यादि कुछ भी हो सकता है।

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