पारिस्थितिकी से आप क्या समझते हैं ? की विवेचना करें। Parisitiki Tantra Se Aap Kya Samajhte Hain? Ki Vivechana Karen.
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पारिस्थितिकी से आप क्या समझते हैं ? की विवेचना करें। Parisitiki Tantra Se Aap Kya Samajhte Hain? Ki Vivechana Karen.

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Ans. पारिस्थितिकी की अवधारणा जितनी नवीन है उतनी ही पुरानी है। यह बात दूसरी कि इसका वर्तमान वैज्ञानिक रूप आधुनिक विज्ञान की देन है। भारतीय मनीषियों ने इस अवधारणा का मूल्यांकन हजारों वर्ष पूर्व किया था। प्रकृति और जीव के अन्तर्सम्बन्धों को जनजन तक बोध कराने के लिए विविध प्रतीकों के रूप में इन्हें धर्म, सामाजिक नियम और आचरण में समाहित कर दिया था। समुच्चय रूप में इसे 'विहंग योग' कहा गया जो प्रकृति और जीव के अन्तर्सम्बन्धों की व्याख्या करता है। यही कारण है कि हजारों वर्ष तक यह सम्बन्ध मित्रवत् चलता रहा है। लेकिन आधुनिकता के आवेश में पुरानी परम्परा और आचरण को नकार दिया गया, क्योंकि प्रकृति पर विजय की अभिलाषा में भौतिक सुख जीवन का आधार बन गया। इससे प्रकृति और जीव के सम्बन्ध बिगड़ने लगे और बाध्य होकर सोचना पड़ा कि ऐसा क्यों घटित हो रहा है? इसी तथ्य की पृष्ठभूमि में आधुनिक विज्ञान ने पारिस्थितिकी की संकल्पना को जन्म दिया।

ज्ञातव्य है कि इस विषयवस्तु की ओर विश्व का ध्यान आकृष्ट करते हुए जर्मन भूगोलवेत्ता हम्बोल्ट (1769-1859) ने लिखा है कि, “प्रकृति जड़ पदार्थ नहीं है, प्रकृति एक पवित्र देन तथा पृथ्वी का आधारभूत बल है। प्राकृतिक विज्ञानों का लक्ष्य विविधता में एकता की खोज करना है । इसका लक्ष्य उस परम् शक्ति की खोज है जिसमें सभी तत्त्व एवं शक्तियाँ एक इकाई के रूप में प्रकट होती हैं । " इसी युग के एक अन्य भूगोलविद् कार्ल रीटर (1779-1859) ने प्रतिपादित किया कि, “पृथ्वी की सतह के तत्त्वों के स्थानिक वितरण में सामंजस्य होता है। ये तथ्य इस तरह से अन्तर्सम्बन्धित होते हैं कि वे सम्बन्धित क्षेत्र को एक अनूठापन प्रदान करते हैं। भूगोलविदों को इनके कारण कार्य सम्बन्ध एवं अन्योन्याश्रितता (Causation and Interdependence) का अध्ययन करना चाहिए | " साथ ही यह भी हिदायत के रूप में लिखा कि " पृथ्वी की उत्पत्ति का नियम मनुष्य नहीं बनाता, प्रकृति के अपने अलग नियम होते हैं, जिनका ज्ञान मानव कल्याण के लिए आवश्यक है। " लेकिन वैज्ञानिक उपलब्धियों और तकनीकी विकास जनित भौतिक सुख की दौड़ में यह अवधारणा बनने लगी कि मनुष्य प्रकृति का स्वामी है। वह अपनी इच्छानुसार आचरण करने के लिए स्वतन्त्र है। इसका कुपरिणाम अब विविध रूपों में प्रकट होने लगा है। फलतः जीवों के लिए उपस्थित खतरों के कारण उनकी भौतिक - जैविक परिस्थितियों को जानना आवश्यक हो गया है। -

पारिस्थितिकी या पारिस्थैतिकी (Ecology) की अवधारणा पर्यावरण और जीवों की तथा उनकी आपस की अन्तर्प्रक्रिया पर आधारित है। प्रकृति के जैव-अजैव संघटक परस्पर क्रिया से आबद्ध हैं। अस्तु पारिस्थितिकी को परिभाषित करते हुए आर० डजोज (R. Dajoj) ने लिखा हैओर न रहकर जैव जगत् के संरक्षण, संवर्धन और जैव विविधता (Biological Diversity ) संरक्षण की मुड़ गया है। अतः इसका नया रूप व्यावहारिक पारिस्थितिकी (Applied Ecology) का बन रहा है। मानव पारिस्थितिकी (Human Ecology) के विविध पक्षों का अध्ययन पर्यावरणविद् कर रहे हैं। विश्वस्तरीय राष्ट्रीय और क्षेत्रीय पारिस्थितिकी के अध्ययन की सीमायें भी निश्चित् की जा रही हैं तथा समस्याओं की जटिलता के कारण इसे अन्तर विषयक (Inter-disciplinary) बनाया जा रहा है ताकि पारिस्थितिकी की समस्याओं का गहराई से छान बीन की जा सके। 

बदली परिस्थिति और तद्नुसार बदले उद्देश्य के कारण पारिस्थितिकी के अध्ययन की विषय-वस्तु में काफी विस्तार आया है। इसीलिये फ्रिडिरिक्स (K. Friederichs) का कथन है कि, “पारिस्थितिकी अब जीव विज्ञान की एक संश्लिष्ट शाखा न रहकर एक दृष्टिकोण बन गई है " इस बात से प्रमाणित होता है कि इसकी विषय-वस्तु का दिनोंदिन विस्तार होता जा रहा है। वास्तव में बढ़ती मानव संख्या, अधिक संसाधन दोहन, अनियंत्रित आर्थिक विकास, कृत्रिम रसायनों का अन्धाधुन्ध औद्योगिक और सामरिक प्रयोग और सर्वश्रेष्ठ बनने की ललक के कारण पर्यावरण प्रदूषण की समस्या समस्त जीवमण्डल के लिये खतरे का संकेत है । अन्ततः इन कठिनाइयों से राहत पाने के लिये जीवमण्डलीय पारिस्थितिक तंत्र का अध्ययन इसकी विषय-वस्तु बनता जा रहा है। इसीलिये वैज्ञानिकों के दृष्टिकोणों में भारी परिवर्तन आया है। लेकिन सभी का उद्देश्य पारिस्थितिकी तंत्र की नैसर्गिकता, संतुलन और भावी खतरों के निवारण में निहित है। इस क्रम में पारिस्थितिकी के अध्ययन में मानव केन्द्रीय बिन्दु बनता जा रहा है, क्योंकि अधिकांश पारिस्थितिकीय समस्याओं के लिये यही जिम्मेदार है।

पारिस्थतिकी की विषयवस्तु को अध्ययन के दृष्टिकोण से दो प्रमुख खण्डों में बाँटा गया है- (1) पारिस्थितिकी के शाश्वत रूप का अध्ययन अर्थात् समस्त जैवमण्डल या उसके किसी भाग के जैविक-अजैविक घटकों में आपसी सम्बन्धों का सैद्धान्तिक अध्ययन तथा ( 2 ) पारिस्थितिकी के असंतुलन से सम्बन्धित समस्याओं का व्यावहारिक अध्यकि, “पारिस्थितिकी एक ऐसा विज्ञान है, जो जीवित जीवों की जीवन प्रक्रिया और पर्यावरण. जिसमें वे निवास करते हैं, तथा परस्पर क्रिया करते हैं, का अध्ययन करता है। " स्पष्ट है कि जैव संघटक (पौधे और प्राणी) एकाकी और सामूहिक रूप में अपने पर्यावरण और अपने जीव सम्प्रदाय से अन्तर्प्रक्रिया कर अपने अस्तित्व को बनाये रखने का प्रयास करते हैं। इनकी अन्तर्प्रक्रिया भौतिक पर्यावरण और जीवों के मध्य ऊर्जा (Energy) तथा उद्दीपन (Stimuli) आदान-प्रदान के रूप में सम्पादित होती है। यही प्रक्रिया जीव जगत् के अस्तित्व का आधार है। स्पष्ट है कि पारिस्थितिकी उस व्यवस्था के अध्ययन को कहते हैं जो पर्यावरण और जीवों की अन्तर्प्रक्रिया की व्याख्या करता है। यह व्यवस्था प्राकृतिक नियमों के अन्तर्गत विकसित होती है। अतः पारिस्थितिकी के अध्ययन में इसी व्यवस्था के रहस्यों का पता लगाया जाता है। यह व्यवस्था इतनी जटिल है कि जैसे-जैसे इसके रहस्य उद्घाटित हो रहे हैं वैसे-वैसे नये रहस्य प्रकट होते जा रहे हैं।

पारिस्थितिकी की अवधारणा को आधुनिक संदर्भ देने का श्रेय जर्मन जीव विज्ञानी अट हैकेल (1869) को है, जिन्होंने आइकोस के आधार पर ओइकोलाजी (Oecologie) शब्द का प्रयोग किया। इसके पूर्व कुछ विद्वानों द्वारा पर्यावरण जीव सम्बन्धों को विश्लेषित करने के लिये इथोलाजी (Ethology), हेक्सीलाजी (Hexilogy) आदि नामावलियों का प्रयोग किया गया था। इन सभी नामावलियों की तुलना में हैकेल की शब्दावली अधिक प्रचलित हुई, जो कालान्तर में अंग्रेज़ी उच्चारण में इकोलाजी (Ecology) बन गई । हैकेल ने इकोलाजी (पारिस्थितिकी) के अर्थ को स्पष्ट करते हुए बतलाया कि यह जीवों के आवास्य का विज्ञान है। इसके अन्तर्गत समस्त जीवों और पर्यावरण के सम्पूर्ण अन्तर्प्रक्रिया का अध्ययन होता है, जो अपने अस्तित्व के लिए संघर्षरत रहते हैं। लेकिन उन्नीसवीं सदी के अंतिम दशकों तक इसका प्रयोग सीमित अर्थों में होता रहा। वनस्पति शास्त्री इसे पादप पारिस्थितिकी (Plant Ecology) के संदर्भ में अधिक प्रयोग करते रहे। 1975 में ई०पी० ओडम ने पारिस्थितिकी को परिभाषित करते हुए प्रतिपादित किया कि जैविक तथा अजैविक संघटक एक-दूसरे से न केवल अन्तर्सम्बन्धित होते हैं अपितु ये दोनों संघटक एक निश्चित तंत्र की भाँति क्रमबद्ध रूप में कार्यशील होते हैं। इस प्रकार पारिस्थितिकी भौतिक तंत्र की संरचना तथा कार्य का अध्ययन है या पारिस्थितिकी प्रकृति की संरचना तथा कार्य का अध्ययन है। -

ब्रिटिश पारिस्थितिकीविद् मैकफेडेन (Macfadyen) की परिभाषा से पारिस्थितिकी का अर्थ व्यापक रूप ग्रहण किया। इनके अनुसार पौधों एवं जन्तुओं तथा उनके पर्यावरण के बीच सम्बन्धों को नियंत्रित तथा संचालित करने वाले नियमों एवं सिद्धान्तों की व्याख्या पारिस्थितिकी की विषयवस्तु है। 1963 में फ्रेसर डार्लिंग (F. Fraser Darling) ने पारिस्थितिकी की विषयवस्तु को अधिक विस्तृत करते हुए प्रतिपादित किया कि, “पारिस्थितिकी समस्त पर्यावरण के संदर्भ में जीवों तथा उनके अन्तर्जातीय एवं आपसी अन्तर्सम्बन्धों का विज्ञान है । " सी०एस० साउथविक (C.S. Southwick) ने पारिस्थितिकी को जीवधारियों का आपस में और उनके पर्यावरणीय अन्तर्प्रक्रिया का अध्ययन कहा है। इन व्यापक परिभाषाओं के आधार पर पारिस्थितिकी अध्ययन के दो स्पष्ट उपागम अपनाये गये हैं- (क) स्वपारिस्थितिकी (Autecology) एवं (ख) समुदाय पारिस्थितिकी (Synecology ) । स्वपारिस्थितिकी के अन्तर्गत किसी विशेष क्षेत्र के एकाकी जैव जाति (Species) का उसके पर्यावरणीय अन्तर्प्रक्रिया का अध्ययन, अर्थात् एक निश्चित् पारिस्थितिक तंत्र में एकांकी जैवजाति का वैज्ञानिक अध्ययन। इसके विपरीत समुदाय पारिस्थितिकी के अन्तर्गत किसी तंत्र विशेष में सम्पूर्ण जातीय समुदायों का आपसी और पर्यावरण से अन्तर्प्रक्रिया का अध्ययन। लेकिन पहले ऐसे अध्ययनों में मनुष्य को छोरीय महत्त्व दिया गया।

मानव समाज की भौतिकवादी विचारधारा पारिस्थितिकी के असंतुलन के लिये जिम्मेदार बताई जा रही है। कहा जा रहा है कि आधुनिक मानव आध्यात्मिक मानव (Spiritual man) के स्थान पर आर्थिक मानव (Economic man) बन गया है। इस प्रकार पारिस्थितिकी के अध्ययन का उद्देश्य व्यापक हो गया है। अब इसका उद्देश्य मात्र शैक्षिक या वैज्ञानिक अध्ययनों तक सीमितयन।

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