जेनेटिक इंजीनियरिंग / आनुवंशिक अभियांत्रिकी क्या है? इसके उपयोग का वर्णन करें। Genetic Engineering Kya Hai? Iske Upyog Ka Varnan Karen.
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जेनेटिक इंजीनियरिंग / आनुवंशिक अभियांत्रिकी क्या है? इसके उपयोग का वर्णन करें। Genetic Engineering Kya Hai? Iske Upyog Ka Varnan Karen.

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Ans. किसी प्राकृतिक जाति (Species) से नयी जाति उत्पन्न करने की मेंडल की संकरण पद्धति (Hybridization method) या प्रजनन - विधि (Breeding method) काफी पुरानी हो चुकी थी। लोग इन्हीं पद्धतियों तक सीमित थे, लेकिन सन् 1944 में एवरी, मैकलियोड तथा मैक कार्टी ने एक जीव के शरीर से जीन का टुकड़ा (Fragment of DNA) सफलतापूर्वक निकाला और वाट्सन तथा क्रिक ने 1953 में इसकी रचना का नमूना (Model) बनाकर तैयार कर दिया। इन दोनों कामों ने अणु आनुवंशिकी (Molecular genetics) में एक क्रांति पैदा कर दी और उसके बाद इस क्षेत्र में जेनेटिक अभियंत्रण का उदय हुआ। सन् 1952 में लेडरबर्ग एवं जिंडर ने किसी दूसरे जीव से जीन या डी० एन० ए० या जीन निकालकर सालमोनेला नामक बैक्टीरिया के जीन के साथ संयुक्त कर जेनेटिक अभियंत्रण की स्थापना कर दी। आनुवंशिक अभियांत्रिकी वह तकनीक है जिसके द्वारा किसी जीव के शरीर से वांछित लक्षण (Character) का डी० एन० ए० या जीन निकालकर किसी अन्य जीव के जीन के साथ आरोपित किया जा सकता है, अवांछित लक्षण वाले जीन को निकाला जा सकता है या उसकी मरम्मत कर उसे सुधारा जा सकता है। किसी जीन पर नये जीन के प्रत्यारोपण से नया जीन बन जाता है जिसकी स्वाभाविक रूप से पुनरावृत्ति (Replication) होती रहती है। इस जीन को युग्मित जीन कहते हैं। आनुवंशिकी अभियांत्रिकी को दूसरे शब्दों में युग्मित जीन भी कहते हैं। आनुवंशिकी अभियांत्रिकी की क्रिया निम्नलिखित चरणों में पूरी होती है।

(i) वांछित लक्षण वाले जीन तत्व को पृथक करना (Isolation of desired genetic material): किसी जीव ( Organism) से वांछित लक्षण (Desired character) वाले जीन तत्व अर्थात डी० एन० ए० (DNA) निकाल कर उसका शुद्धिकरण (Purification) किया जाताAns. किसी प्राकृतिक जाति (Species) से नयी जाति उत्पन्न करने की मेंडल की संकरण पद्धति (Hybridization method) या प्रजनन - विधि (Breeding method) काफी पुरानी हो चुकी थी। लोग इन्हीं पद्धतियों तक सीमित थे, लेकिन सन् 1944 में एवरी, मैकलियोड तथा मैक कार्टी ने एक जीव के शरीर से जीन का टुकड़ा (Fragment of DNA) सफलतापूर्वक निकाला और वाट्सन तथा क्रिक ने 1953 में इसकी रचना का नमूना (Model) बनाकर तैयार कर दिया। इन दोनों कामों ने अणु आनुवंशिकी (Molecular genetics) में एक क्रांति पैदा कर दी और उसके बाद इस क्षेत्र में जेनेटिक अभियंत्रण का उदय हुआ। सन् 1952 में लेडरबर्ग एवं जिंडर ने किसी दूसरे जीव से जीन या डी० एन० ए० या जीन निकालकर सालमोनेला नामक बैक्टीरिया के जीन के साथ संयुक्त कर जेनेटिक अभियंत्रण की स्थापना कर दी। आनुवंशिक अभियांत्रिकी वह तकनीक है जिसके द्वारा किसी जीव के शरीर से वांछित लक्षण (Character) का डी० एन० ए० या जीन निकालकर किसी अन्य जीव के जीन के साथ आरोपित किया जा सकता है, अवांछित लक्षण वाले जीन को निकाला जा सकता है या उसकी मरम्मत कर उसे सुधारा जा सकता है। किसी जीन पर नये जीन के प्रत्यारोपण से नया जीन बन जाता है जिसकी स्वाभाविक रूप से पुनरावृत्ति (Replication) होती रहती है। इस जीन को युग्मित जीन कहते हैं। आनुवंशिकी अभियांत्रिकी को दूसरे शब्दों में युग्मित जीन भी कहते हैं। आनुवंशिकी अभियांत्रिकी की क्रिया निम्नलिखित चरणों में पूरी होती है।

(i) वांछित लक्षण वाले जीन तत्व को पृथक करना (Isolation of desired genetic material): किसी जीव ( Organism) से वांछित लक्षण (Desired character) वाले जीन तत्व अर्थात डी० एन० ए० (DNA) निकाल कर उसका शुद्धिकरण (Purification) किया जाताAns. किसी प्राकृतिक जाति (Species) से नयी जाति उत्पन्न करने की मेंडल की संकरण पद्धति (Hybridization method) या प्रजनन - विधि (Breeding method) काफी पुरानी हो चुकी थी। लोग इन्हीं पद्धतियों तक सीमित थे, लेकिन सन् 1944 में एवरी, मैकलियोड तथा मैक कार्टी ने एक जीव के शरीर से जीन का टुकड़ा (Fragment of DNA) सफलतापूर्वक निकाला और वाट्सन तथा क्रिक ने 1953 में इसकी रचना का नमूना (Model) बनाकर तैयार कर दिया। इन दोनों कामों ने अणु आनुवंशिकी (Molecular genetics) में एक क्रांति पैदा कर दी और उसके बाद इस क्षेत्र में जेनेटिक अभियंत्रण का उदय हुआ। सन् 1952 में लेडरबर्ग एवं जिंडर ने किसी दूसरे जीव से जीन या डी० एन० ए० या जीन निकालकर सालमोनेला नामक बैक्टीरिया के जीन के साथ संयुक्त कर जेनेटिक अभियंत्रण की स्थापना कर दी। आनुवंशिक अभियांत्रिकी वह तकनीक है जिसके द्वारा किसी जीव के शरीर से वांछित लक्षण (Character) का डी० एन० ए० या जीन निकालकर किसी अन्य जीव के जीन के साथ आरोपित किया जा सकता है, अवांछित लक्षण वाले जीन को निकाला जा सकता है या उसकी मरम्मत कर उसे सुधारा जा सकता है। किसी जीन पर नये जीन के प्रत्यारोपण से नया जीन बन जाता है जिसकी स्वाभाविक रूप से पुनरावृत्ति (Replication) होती रहती है। इस जीन को युग्मित जीन कहते हैं। आनुवंशिकी अभियांत्रिकी को दूसरे शब्दों में युग्मित जीन भी कहते हैं। आनुवंशिकी अभियांत्रिकी की क्रिया निम्नलिखित चरणों में पूरी होती है।

(i) वांछित लक्षण वाले जीन तत्व को पृथक करना (Isolation of desired genetic material): किसी जीव ( Organism) से वांछित लक्षण (Desired character) वाले जीन तत्व अर्थात डी० एन० ए० (DNA) निकाल कर उसका शुद्धिकरण (Purification) किया जाता है।बैकविथ तथा उनके सहायकों (Back with and his collegues) ने इश्चिरिचिया कोलाई (Escherichia coli) नामक बैक्टीरिया से लैक ओपेरान (Lac operon) के कुछ जीनों को निकाल कर उसका शुद्धिकरण किया था।

(ii) जीन निर्माण (Synthesis of gene) : निकाले गये जीव तत्वं को परखनली (Test tube) में उचित माध्यम में रखकर उससे नये जीन का निर्माण किया जाता है। नव-निर्मित जीन पुनारावृत्ति विकर ( Replicating enzyme) तथा नाइट्रोजनयुक्त क्षार ( Nitrogeneous bases) की उपस्थिति में स्वाभाविक रूप से पुनरावृत्ति (Replication) करता है। इस विधि से वांछित लक्षण (Desired characters) वाले नये जीन के निर्माण में सहायता मिलती है। डॉ० हर गोविन्द खोराना ने इस काम को सफलतापूर्वक किया था।

(iii) जीन तत्व का प्रत्यावर्तन तथा आरोपण (Transfer and manipulation of genetic material) : परखनली से वह नव-निर्मित जीन तत्व प्रत्यावर्तन द्वारा किसी दूसरे जीव के साथ आरोपित कर दिया जाता है या जोड़ दिया जाता है अथवा परखनली में वांछित लक्षण (Desired character) वाले नये जीन को किसी के शरीर में आरोपित किया जाता है। ये क्रियाएँ निम्नलिखित विधियों से सम्पन्न होती हैं

(a) प्रत्यावर्तन (Trnsformation) : नव-निर्मित जीन तत्व ( डी० एन० ए ० ) को किसी दूसरे जीव (Organism) के जीन के पास लाया जाता है। इस नव-निर्मित जीन को किसी दूसरे जीव या उत्तक (Tissue) या कोशा (Cell) के पास ले जाकर उसके जेनेटिक तत्व के साथ मिलान कर दिया जाता है। इस विधि से वह लक्षण उत्पन्न होता है जिसके लिए उसकी जेनेटिक रचना होती है। प्रत्यावर्तन का परीक्षण कई जन्तुओं एवं पौधों में किया गया है। पहले ऐसा विश्वास किया जाता था कि जीन प्रत्यावर्तन में पौधे की मोटी कोशाभित्ति ही अवरोध का काम करती है, लेकिन वर्तमान में उस मोटी कोशाभित्ति को किसी विशेष विकर (Enzyme) द्वारा पूर्णत: या अंशतः समाप्त कर उस कठिनाई को दूर कर दिया गया है।

(b) आरोपण(Transduction) : प्रत्यावर्तित जीन तत्व(डी० एन० ए०)को दूसरे जीव के जीन के साथ जोड़ दिया जाता है या आरोपित कर दिया जाता है। इसमें एक विशेष अवस्था में एक कोशा या ऊतक या जीव से जीन का प्रत्यारोपण या आरोपण दूसरी कोशा या ऊतक में किया जाता है। इस क्रिया की खोज सर्वप्रथम बैक्टीरिया में की गयी। बैक्टीरिया में लैम्डा(Lamda)नामक अवस्था (Phase) में जीन का प्रवेश कराया गया। प्रवेश के पश्चात् बैक्टीरिया कोशा जीवित रहा और उसके जीन की पुनरावृत्ति( Multiplication) हुई। पुनरावृत्ति के कारण संकर (Hybrid) जीन की उत्पत्ति हुई । पुनः उस जीन का प्रत्यारोपण दूसरे और तीसरे बैक्टीरिया में कराये जाने से एक नये जीन का निर्माण हो गया।

(c) प्लाजमिड्स (Plasmids) : प्लाजमिड डी० एन० ए० को गोलाकार वलय (Circular ring) होता है, जो बैक्टीरिया में पाया जाता है। इसी गोलाकार वलय के साथ इसे जोड़ दिया जाता है। इस क्रिया के लिए रेस्ट्रिक्शन एण्डोन्यूक्लिएज तथा नाइगेजेज विकर की उपस्थिति आवश्यक होती है। रेजिस्ट्रक्शन एण्डोलेज पलाजमिड तथा नये लाये गये डी० एन० ए० को तोड़ने का कार्य करता है जिससे उसका दोनों छोर चिपचिपा (Sticky) हो जाता है। उन दोनों छोरों को जोड़ दिया जाता है। लाइगेज जोड़े हुए बिन्दुओं को पक्का कर समतल कर देता है। इस प्रकार गोलाकार वलय पूर्ण हो जाता है जिसमें एक टुकड़ा बाहरी होता है। इसी क्रिया को ई० कोलाई के प्लाजमिड के साथ एक चूहे के डी० एन० ए० के साथ जोड़कर इन्सुलिन जीन बनाया गया है। 

आनुवंशिक अभियांत्रिकी की उपयोगिताएँ या लाभ :

आनुवंशिक अभियांत्रिकी एक अत्यन्त उपयोगी तकनीक है जिसके अनेक लाभ होते हैं(i) टीका निर्माण (Vaccine preparation) : बहुत से खतरनाक वाइरस तथा बैक्टीरियाको प्रयोगशाला में पाल कर इससे टीका बनाना जोखिम भरा काम होता है, जैसे छोटी माता (Small pox) का वाइरस। ऐसे खतरनाक बैक्टीरिया तथा वाइरस से आनुवंशिक अभियांत्रिकी द्वारा टीका बनाना असान, सस्ता तथा निरापद होता है।

(ii) हार्मोन तैयार करना (Hormone synthesis) : सोमैटोस्टेटिन (Somatostatin), इन्सुलिन (Insulin) तथा मानव वृद्धि हार्मोन (Human growth hormone) इस अभियंत्रण के द्वारा आसानी से तैयार किया जाता है।

(iii) इंटरफैरौन निर्माण (Interferon preparation) : यह किसी खतरनाक वाइरस के आक्रमण को रोकने वाला प्रोटीन (Anti viral protein) होता है, जो इस अभियंत्रण से सहज रूप में तैयार किया जाता है।

(iv) जीन चिकित्सा (Genetheraphy) : आनुवंशिकी अभियांत्रिकी द्वारा लगभग 2000 जन संबंधी रोगी का इलाज किया जाता है, जिसे जीन चिकित्सा (Genetheraphy) कहते हैं। - (v) कृषि क्षेत्र में आनुवंशिकी अभियांत्रिकी : कृषि कार्य में आनुवंशिकी अभियांत्रिकी से फसलों की उन्नत किस्में प्राप्त की जाती हैं? साथ ही इस तकनीक की सहायता से किसी फसल के पौधों में नाइट्रोजन स्थिरीकरण करने वाली जीन (Nitrogen fixing gene) प्रवेश कराकर अच्छी फसल पैदा की जा सकती है।

 (vi) आनुवंशिक अभियांत्रिकी की सबसे बड़ी विशेषता यह होती है कि इसकी सहायता इच्छानुसार नयी किस्म के आदमी, पशु, पक्षी या कोई जीव उत्पन्न किया जा सकता है या किसी आदमी, जीव या पौधे में इच्छानुसार नये लक्षण (Characters) उत्पन्न किये जा सकते हैं। इस प्रकार इस तकनीक से नया मानव, नये पशु तथा नये पौधे उत्पन्न कर नयी सृष्टि रचना की जा सकती है।-

आनुवंशिक अभियांत्रिकी से हानि :- जो चीज जितनी शक्तिशाली होती है वह उतनी ही विनाशकारी भी हो सकती है। जेनेटिक अभियंत्रण से अगर नये आदमी, पशु-पक्षी और पादप निर्मित कर नयी सृष्टि रचना की जा सकती हैं तो इसी अभियंत्रण से अत्यन्त विनाशकारी बैक्टीरिया या वाइरस भी उत्पन्न किया जा सकता है जो सम्पूर्ण विश्व को रोगग्रस्त, गूँगा, पंगु बना सकता है या नष्ट कर सकता है। इस भयानकता की ओर सन् 1972 में वैज्ञानिकों का ध्यान जब गया तो उन लोगों ने एक कमिटी बना कर इन विनाशकारी तत्वों पर रोक लगा दी है।

लाभ और हानियों के अध्ययन से यह स्पष्ट हो जाता है कि यह एक वरदान भी है और अभिशाप भी।

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