शुक्राणु बनने की प्रक्रिया को शुक्राणुजनन कहा जाता है।आदिबीजकोशिकाएँ पहले गुणन की अवस्था में प्रवेश करती है। इस क्रिया में बार-बार विभाजित होकर ये शुक्राणुकोशिकाजन बनाती है। इसमें कुछ - शुक्राणुकोशिकाजन A तथा बाकी सभी शुक्राणुकोशिकाजन B का निर्माण करता है। यहाँ शुक्राणुकोशिकाजन A एक साथ मिलकर शुक्राणु कुल बनाता है जबकि शुक्राणुकोशिकाजन B परिवर्तित होकर प्राथमिक शुक्राणुकोशिका का रूप धारण करता है। प्राथमिक शुिकाणुकोशिका बड़ा तथा द्विगुणित अथवा 2N, अर्थात् 24+XY( कुल 46) क्रोमोसोम की संरचना रखता है।
प्राथमिक मुकाणुका शिका जल्द ही ह्रास या मीओसिस विभाजन में प्रवेश कर प्रोफेज अवस्था की लेप्टान, जोयगोटीन, पैकीटीन, डिप्लोटीन तथा डायकिनेसिस हम-अवस्थाओं से होकर गुजरती प्रोफेज की यह लंबी अवस्था अब मेटाफेज, लापता था टेलोफेज से होती हुई सीओसिस विभाजन की क्रिया को पूरी करती । विभाग की इस अवस्था से सभी पनी कोशिकाएँ छोटी होती हैं तथा परवर्ती शक कोशिकाएँ कहलाती है। ये सभी कोशिकाएँ अगुणित होती हैं तथा 22 + X थवा 22+Y ( कुल 23 ) कोमोसो संख्या की बनी होती है।
अब सभी परवर्ती शुक्राणुकोशिकाएँ मीओसिस II की अवस्था में प्रवेश करती है तथा पूर्वशुक्राणुओं को बनाती है। इस प्रकार प्रत्येक शुक्राणुकोशिकाजन B कुलं 4 अगुणित पूर्वशुक्राणुओं का निर्माण करती है। ये फिर विभाजित नहीं होते और शुक्राणुओं में रूपांतरित हो जाते हैं। पुर्वशुक्राणुओं के शुक्राणुओं में रूपांतरण को शुक्राणु रूपांतरण कहते हैं। गोलाकार पूर्वशुक्राणु लंबा हो जाता है। उसमें एक गर्दन और एक पूँछ भी बन जाती है।