विषमांगी उत्प्रेरण में अधिशोषण की क्या भूमिका है ?
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विषमांगी उत्प्रेरण में अधिशोषण की क्या भूमिका है ?

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Fe, V20s तथा Ni जैसे चूर्ण रूप में अधिशोषक बहुत अधिक सक्रियता से कार्य करते हैं जैसे हाबर प्रक्रम द्वारा NH, का बनना H2SO4 का सम्पर्क विधि से तैयार करना या वनस्पति तेल घी से वनस्पति तेल का बनना आदि विषमांगी उत्प्रेरण अधिशोषण के उदाहरण हैं। 

विषमांगी उत्प्रेरण से उत्प्रेरक की अवस्था अभिकारक से भिन्न होती है। उत्प्रेरण क्रिया उत्प्रेरक की सतह पर केन्द्रित होती है। क्रियाविधि में पाँच पद सम्मिलित होते हैं

(i) उत्प्रेरक की सतह पर अभिक्रियकों का विसरण ।

(ii) उत्प्रेरक की सतह पर अभिक्रियक अणुओं का अधिशोषण

(iii) एक मध्यवर्ती निर्माण द्वारा उत्प्रेरक की सतह पर रासायनिक अभिक्रिया का होना ।

 (iv) उत्प्रेरक सतह से अभिक्रिया उत्पादों का विशोषण होने के बाद सतह का दोबारा अधिक अभिक्रिया होने के लिए उपलब्ध कराना। 

(v) अभिक्रिया उत्पादों का उत्प्रेरक की सतह से दूर विसरण |

उत्प्रेरक विभिन्न तरीकों से रासायनिक अभिक्रिया सम्पन्न करता है।

अतः (i) अधिशोषण से अभिकारक की सान्द्रता उत्प्रेरक पर बढ़ जाती है। सान्द्रता बढ़ने से अभिक्रिया तीव्र गति से सम्पन्न होती है। 

(ii) अधिशोषित अणु वियोजित होकर सक्रिय अवयव जैसे स्वतन्त्र अवयव बनाते हैं। जो अभिक्रिया को तीव्र गति से प्रदान करते हैं। 

(iii) अधिशोषित अणु स्वतन्त्र रूप से गति नहीं कर सकते इसलिए वे पृष्ठ पर ही एक-दूसरे से संघट्य होकर अभिक्रिया सम्पन्न करते हैं।

 (iv) अधिशोषण में उत्पन्न ऊर्जा, सक्रिय ऊर्जा का कार्य करती है।

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