गुप्त शासक चंद्रगुप्त द्वितीय के बारे में बताएं । Gupt Shasak Chandragupta Dwitiya Ke Bare Mein Bataen.
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गुप्त शासक चंद्रगुप्त द्वितीय के बारे में बताएं । Gupt Shasak Chandragupta Dwitiya Ke Bare Mein Bataen.

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चंद्रगुप्त द्वितीय ( 375 से 415 ई० ):- समुद्रगुप्त के बाद राम गुप्त को हटाकर उसका योग्य पुत्र चंद्रगुप्त द्वितीय शासक बना। इसमें शक आक्रमणकारियों से साम्राज्य की रक्षा की ।

चन्द्रगुप्त द्वितीय द्वारा गद्दी पर इस तरह अधिकार जमाया गया :

शकों के द्वारा जब साम्राज्य के लिए संकट उत्पन्न किया गया तो रामगुप्त ने अपनी पत्नी धुवदेवी को सौंपने का निश्चय किया। क्योंकि शकाधिपति धुवदेवी की सुन्दरता पर आसक्त थे। चन्द्रगुप्त द्वितीय रामगुप्त की कायरता पर काफी सुध हुआ। इसने धुवदेवी का वेष धारणकर शक शिविर गया और शकाधिपति की हत्या कर दी। इसके बाद चन्द्रगुप्त द्वितीय ने रामगुप्त की भी हत्या कर दी और गद्दी पर कब्जा करके धुवदेवी से विवाह कर लिया।

दिल्ली के मेहरौली स्थित लौह स्तंभ में चन्द्र नाम के जिस शासक का उल्लेख मिलता है , उसे चन्द्रगुप्त द्वितीय ही समझा जाता है। इस लेख में चन्द्रगुप्त द्वितीय को एक वीर राजा के रूप में याद किया गया है , जिसने पूर्व में बंगाल और पश्चिम में बलूचिस्तान तक अपने साम्राज्य का विस्तार किया। इसने पश्चिमी भारत में (समुद्रगुप्त के बाद) पुनः अभियान चलाकर गणराज्यों के अस्तित्व को समाप्त कर डाला।

चन्द्रगुप्त द्वितीय का समय शक्ति और समृद्धि का सूचक था। इसने पहले अभियान में पश्चिमी भारत (मालवा, गुजरात एवं सौराष्ट्र) पर विजय प्राप्त की। इस विजय के फलस्वरूप खम्भात एवं सोपारा के बन्दरगाह गुप्तों के नियंत्रण में आ गए।

चन्द्रगुप्त द्वितीय ने अपनी पुत्री प्रभावती गुप्त की शादी दक्षिण भारत के वकाटक नरेश रूद्रसेन द्वितीय से की, जिसके कारण राजनीतिक एवं सामरिक रूप से यह बहुत प्रभावशाली हो गया। पश्चिमी शकक्षत्रप रूद्रसिम्हा तृतीय को इसने 395 ई0 में पराजित किया तथा बंग(बंगाल) को भी जीता। इसने अपने साम्राज्य का विस्तार पश्चिमी से पूर्वी समुद्रों(अरब सागर से बंगाल की खाड़ी) तक किया। इसकी एक महत्वपूर्ण उपलब्धि राजधानी को पाटलिपुत्र के अतिरिक्त उज्जैन को दूसरी राजधानी के रूप में स्थापित करनी थी। चन्द्रगुप्त द्वितीय ने विक्रमादित्य की उपाधि धारण की।

चन्द्रगुप्त द्वितीय के काल में साहित्य कला, विज्ञान एवं संस्कृति के क्षेत्र में महत्वपूर्ण उपलब्धियाँ हासिल की गईं। चीनी यात्री फाहियान इसी के समय भारत आया। चन्द्रगुप्त द्वितीय ने विदेशों से भी व्यापारिक संबंध स्थापित किए एवं बड़ी मात्रा में सोने के सिक्के भी जारी किए।

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