समुद्रगुप्त (335 से 375 ) गुप्त वंश का सबसे प्रभावशाली शासक था । उसके बारे में राज्य कवि हरिसेन द्वारा लिखित एक प्रशस्ति से जानकारी मिलती है। इसे प्रयाग प्रशस्ति भी कहते हैं। इसके अतिरिक्त समुद्रगुप्त के बारे में एरण अभिलेख ( मध्य प्रदेश ) और विभिन्न प्रकार के सिक्के आदि से भी जानकारी मिलते हैं, जिसमें उसे वीणा बजाते हुए दिखाया गया है ।
प्रयाग प्रशस्ति के अनुसार समुद्रगुप्त की जानकारी:-
1. समुद्रगुप्त ने आर्यावर्त के शासकों को पराजित कर सीधा अपने नियंत्रण में ले लिया। इस क्षेत्र के नौ शासकों को इसने पराजित किया।
2. दक्षिण के बारह शासकों को समुद्रगुप्त ने पराजित कर समर्पण करने के लिए मजबूर किया। हालांकि इन राज्यों को पुनः स्वतंत्र कर दिया गया। ये समुद्रगुप्त के करद-राज्य थे। इनके द्वारा कर के रूप में निश्चित उपहार प्रदान किया जाता था।
3. वन क्षेत्र के राजा जो आटविक प्रदेश के राजाके रूप में जाने जाते हैं। इनके क्षेत्र का विस्तार उत्तरप्रदेश के गाजीपुर से लेकर मध्यप्रदेश के जबलपुर तक था। इन राजाओं (जो संभवतः अपने कबीले के सरदार थे) को भी समुद्रगुप्त ने अधीनता स्वीकार करने के लिए बाध्य किया इन्हें सेवक या परिचारक का दर्जा प्रदान किया गया । इनके साथ समुद्रगुप्त ने अपेक्षाकृत नरम व्यवहार किया।
4. भारत के सीमावर्ती राज्यों ने भी उपहार एवं राजनिष्ठा का प्रमाण देकर समुद्रगुप्त सामने आत्मसमर्पण किया। इन राज्यों में पूर्व की ओर कामरूप (असम), बंगाल का कुछ भाग और नेपाल, उत्तर पश्चिम की ओर मालवा, अर्जुनायन, यौधेय, आभीर, आदि कई गणसंघ शामिल थे। ये शासक उपहार प्रदान करते थे, राजा की आज्ञाओं का पालन करते थे एवं दरबार में भी उपस्थित होते थे।
5. बाहरी क्षेत्रों के शासक जो शायद शकों एवं कुषाणों के वंशज एवं सिंहल प्रदेश के शासक थे। इन सबों ने समुद्रगुप्त की अधीनता स्वीकार की तथा वैवाहिक संबंध भी स्थापित किए। इनकी विदेश नीति पर समुद्रगुप्त का प्रभाव था।
इस तरह आप देखते हैं कि समुद्रगुप्त ने उपरोक्त विजित प्रदेशों के लिए - अलग नीतियाँ अपनाई । जहाँ इसने आर्यावर्त (उत्तर भारत) के राज्यों को सीधा अपने नियंत्रण में लिया, वहीं दूर के राज्यों एवं आटविक प्रदेश के साथ नरम व्यवहार किया। जो उसकी बुद्धिमत्ता का सूचक है, क्योंकि उस सयम संपूर्ण भारत पर सीधा नियंत्रण स्थापित अलग करना आसान नहीं था।