विगत 10-15 वर्षों के दौरान बालिकाओं का स्कूल जाना उल्लेखनीय रूप से बढ़ा है। बावजूद इसके सबके लिये शिक्षा संतोषजनक नहीं है और लैंगिक समानता न हो पाने की आशंका है। योजना के हर एक पहलू में लैंगिक संदर्भ शामिल किया जाना जरूरी है। उदाहरण के लिये विद्यालयों में बालिकाओं की भागीदारी को बढ़ाने के लिये ऑपरेशन ब्लैक बोर्ड के तहत यह अपेक्षित था कि किसी भी प्राथमिक विद्यालय में नियुक्त हर दूसरा शिक्षक महिला होगी। भारत में आर्थिक सुधार के पश्चात महिला साक्षरता बढ़ाने के विशेष प्रयास किए जा रहे हैं और इसके कुछ सकारात्मक परिणाम मिलने प्रारम्भ हुए हैं। सरकार द्वारा विभिन्न शिक्षा कार्यक्रमों को संचालित किया जा रहा है, जैसे सर्वशिक्षा अभियान, शिक्षा गारंटी और वैकल्पिक एवं प्रयोगात्मक शिक्षा, कस्तूरबा गांधी स्वतंत्र विद्यालय योजना, शिक्षा सहयोग योजना इत्यादि। इन कार्यक्रमों में महिलाओं एवं समाज के वंचित वर्गों की ओर भी विशेष ध्यान दिया गया है। यूनेस्को ने भारत के प्रयासों के लिये दो बार लगातार साक्षरता पुरस्कार देकर केरल तथा पश्चिम बंगाल की सराहना की है।
आज भागीदारी की दृष्टि से कृषि, पशु व्यवसाय, हथकरघा आदि क्षेत्रों में महिलाओं के योगदान के अनुपात में काफी सीमा तक वृद्धि हुई है। पिछले दशक में महिलाओं की क्रियाओं से संबंधित नये आयाम उभरकर सामने आए हैं। अब महिलाएँ इलेक्ट्रॉनिक्स टेली कम्यूनिकेशन, उपभोक्ता उत्पादन, संगठित क्षेत्र के उद्योग विधि चिकित्सा संबंधी प्रशासनिक तथा अन्य महत्वपूर्ण व्यवसायों में आगे आ रही हैं। महिलाओं के लिये कार्य शब्द का कोई अर्थ परिभाषा व सीमा निर्धारित नहीं है। यद्यपि महिलाएँ राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था में 60-80 प्रतिशत तक योगदान करती हैं तथापि उनकी बहुत सारी क्रियाओं को सकल राष्ट्रीय उत्पादन में सम्मिलित नहीं किया जाता है। एक अनुमान के आधार पर महिलाओं की अवैतनिक श्रम की नकद वार्षिक कीमत लगभग 4 खरब डॉलर होती है जो विश्व के सकल राष्ट्रीय उत्पाद का एक तिहाई भाग है। अर्थव्यवस्था में महिलाओं की आर्थिक क्रियाओं में संलग्नता विकास की दृष्टि से अत्यधिक महत्वपूर्ण है।
आर्थिक सुधारों के बाद से महिलाओं का योगदान धीरे-धीरे बढ़ रहा है। वह प्रत्येक क्षेत्र में कार्य कर रही हैं। चाहे वह निजी क्षेत्र हो या सार्वजनिक क्षेत्र संगठित क्षेत्र में महिलाओं का योगदान 2001 में बढ़कर 17.8 प्रतिशत हो गया। प्रमुख उद्योगों में महिला कर्मचारियों की संख्या के विश्लेषण से पता चलता है कि अधिकतर महिलाएँ सामुदायिक, सामाजिक और निजी सेवा क्षेत्र में कार्यरत हैं। बिजली, गैस, पानी आदि क्षेत्रों में सबसे कम संख्या में महिलाओं को रोजगार मिला हुआ है। वर्ष 2000 में कारखानों एवं वृक्षारोपण में कार्यरत श्रमिकों में महिला श्रमिकों की संख्या क्रमश: 10 प्रतिशत तथा 50 प्रतिशत थी। महिला श्रमिकों के बारे में सरकारी नीतियों का मुख्य उद्देश्य उनके काम में आने वाली बाधाओं को दूर करना, मजदूरी, मोलभाव क्षमता और सेवा शर्तों में सुधार लाना, कुशलता बढ़ाना तथा उनके लिये रोजगार के बेहतर अवसर जुटाना है। भारत में राष्ट्रीय आय में महिलाओं का योगदान केवल 10 प्रतिशत है उनका शेष 90 प्रतिशत कार्य असंगठित क्षेत्रों में कम मजदूरी और बिना मजदूरी के होता है। असंगठित क्षेत्रों में कम से कम 80 प्रतिशत महिला श्रमिक कार्य करती हैं। वे कृषि क्षेत्र, मछलीपालन, खादी एवं ग्रामीण उद्योग, हैंडलूम, हस्तकला, निर्माण कार्य, घरेलू कार्य, खाद्य उद्योग आदि विभिन्न उद्योगों में कार्यरत हैं। असंगठित क्षेत्रों में महिला श्रमिकों की स्थिति पर विशेष ध्यान देने की आवश्यकता है। इन क्षेत्रों में महिलाओं का शोषण होता है, उनसे कम मजदूरी पर कार्य कराया जाता है तथा उनके रोजगार की भविष्य में कोई सुरक्षा नहीं होती।