राजनीति शास्त्र (Political Science) को राजनीति विज्ञान तथा राजनीति सिद्धान्त भी कहा जाता है।
राजनीति शास्त्र समाज विज्ञान का वह अंग है जो राज्य के मूल आधार और शासन सिद्धान्तों की विवेचना करता है।
यह भूत, वर्तमान तथा भविष्यत्काल के राजनीतिक संगठनों, राजनीतिक सिद्धान्तों तथा राजनीतिक कार्यों का वर्णन करता है।
राजनीतिक सिद्धान्त के दो रूप हैं- परम्परागत और आधुनिक। परम्परागत रूप 1960 के. पहले तक ही विकसित था।
इसका आधुनिक रूप का 1960 में पदार्पण माना जाता है। आधुनिक राजनीतिशास्त्र अपने परम्परागत राजनीतिशास्त्र से प्रकृति, विषयवस्तु, लक्ष्य, अध्ययन पद्धति तथा अवधारणात्मक विषय-परिधि में बिल्कुल भिन्न है।
यह बात सही है कि व्यवहारवादी राजनीतिशास्त्रियों ने इस अनुशासन को विकसित करने तथा इसे वैज्ञानिक रूप देकर सिद्धान्त निर्माण की दिशा में काफी प्रयास किया है।
लेकिन नवीन राजनीतिशास्त्रियों के विचारों में परस्पर इतना मतभेद है कि अभी तक नवीन राजनीतिशास्त्र की रूपरेखा का निश्चित निधारिण नहीं हो पाया है।
व्यवहारवादियों की शोध-पद्धतियों, शोध तकनीकों तथा अन्य सामाजिक शास्त्रों के साथ राजनीतिशास्त्र के संबंध को लेकर आज काफी विवाद खड़ा हो गया है।
नवीन राजनीतिशास्त्रियों के विचार द्वन्द्व और विभिन्न विषयों के सम्बन्ध में पारस्परिक मतभेद के कारण हम आधुनिक राजनीतिशास्त्र की रूपरेखा के सम्बन्ध में कोई भविष्यवाणी नहीं कर सकते।
फिर भी, यह मानना होगा कि नवीन राजनीतिशास्त्र का आधार अनुभववादी है और इसकी अध्ययन प्रणाली निश्चित रूप से व्यवहारवादी हो गई है।
यहाँ हम आधुनिक राजनीतिशास्त्र और परम्परागत राजनीतिशास्त्र में अन्तर्भेद कर सकते हैं —
1. विषय क्षेत्र के दृष्टिकोण से अन्तर : अपने विषय क्षेत्र की दृष्टि से, आधुनिक, राजनीति शास्त्र अपने परम्परागत राजनीतिशास्त्र से मूलतः भिन्न एवं विस्तृत है।
परम्परागत दृष्टिकोण के अन्तर्गत राजनीतिशास्त्र में मूल्यों एवं लक्ष्यों को प्रमुख स्थान दिया जाता था।
इसके अन्तर्गत राज्य और सरकार की उत्पत्ति, विकास, संगठन तथा विभिन्न राजनीतिक दलों, राजनीतिक विचारधाराओं, विश्व की विभिन्न सरकारों और संविधानों, अन्तर्राष्ट्रीय सम्बन्धों तथा लोक प्रशासन की कलाओं का अध्ययन किया जाता है।
गार्नर ने भी कहा है कि राजनीति विज्ञान का राज्य के साथ आरम्भ और अन्त होता है। लेकिन, आधुनिक राजनीतिशास्त्र राज्य की अनुपस्थिति में राजनीति का अध्ययन करता है।
इसलिए दोनों के विषय क्षेत्र में आज काफी अन्तर आ गया है। आज नवीन राजनीतिशास्त्र के अन्तर्गत इतना परिवर्तन हुआ है कि इसने राजनीति से ही अपने को सम्बद्ध कर दिया है।
इसके अन्तर्गत राजनीति का कई गुणा, अधिक प्रभाव और प्रसार राज्य और उसकी संस्थाओं से बाहर रहता है।
नवीन राजनीतिशास्त्र के अनुसार, राजनीति का निवास राज्य-विहीन समाज और संगठनों में तथा राज्य के अलावा अन्य औपचारिक एवं अनौपचारिक संगठनों में होता है।
अपने को अधिक वैज्ञानिक बनाने की दृष्टि से आधुनिक राजनीतिशास्त्र ने राज्य सम्बन्धी लक्ष्य सरकारी क्रियाकलापों, संस्थाओं तथा ऐतिहासिक पद्धतियों को अपने से अलग कर दिया है।
इसके बदले वह मनुष्य के राजनीतिक व्यवहार तथा गतिविधियों का अध्ययन करने लगा है।
1967 ई० "अमेरिकन पॉलिटिकल साइन्स एसोसिएशन" ने राजनीतिशास्त्र के 27 उपक्षेत्रों की चर्चा की जो अनुशासन की परिवर्तित प्रकृति की ओर संकेत करते हैं।
राजनीति मनुष्य और उसका व्यवहार, समूह संस्थाएँ, प्रशासन, अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति के सिद्धान्त, अर्थशास्त्र, समाजशास्त्र, शोध-पद्धतियाँ, सांख्यिकी सर्वेक्षण इत्यादि इन उपक्षेत्रों में प्रमुख हैं।
आर्नल्ड ब्रेस्ट ने आधुनिक सिद्धान्त के अन्तर्गत समूह, संतुलन, शक्ति नियंत्रण एवं प्रभाव क्रिया, अभिजन, चयन तथा विनिश्चय प्रक्रिया पूर्वभाषित क्रिया इत्यादि की ओर संकेत किया है।
इसके अलावा आधुनिक दृष्टिकोण के अनुसार, राजनीतिक तत्त्वों को अनेक रूपों में देखा जाता है, जैसे —
- शक्ति, उसकी प्रकृति और प्रयोग के रूप में।
- एक इकाई के रूप में राजनीतिक व्यक्ति
- मूल्यों के उत्पादन, वितरण और कार्यान्वयन के रूप में तथा नीतियों और नीति-निर्माण के रूप में।
इस प्रकार, आधुनिक राजनीतिशास्त्र नवीन राजनीतिक विषयों का अध्ययन करता है, जबकि परम्परागत दृष्टिकोण में हम ऐसी बात नहीं पाते।
परम्परागत दृष्टिकोण में राज्य और उनकी संरचनाओं से सम्बद्ध विषयों और समस्याओं को राजनीति विज्ञान का विषय माना जाता है।
2. लक्ष्य-सम्बन्धी दृष्टिकोण से अन्तर : आधुनिक तथा व्यवहारवादी राजनीति के विश्लेषण के लक्ष्य अपने परम्परावादी राजनीति लक्ष्य से बिल्कुल भिन्न है।
जहाँ परंपरागत राजनीति का उद्देश्य उत्तम जीवन की प्राप्ति है, वहाँ आधुनिक राजनीतिशास्त्र का उद्देश्य राजनीतिक घटनाओं का यथार्थ रूप में समझना है।
इस सम्बन्ध में आधुनिक राजनीतिशास्त्री भविष्यवाणी भी करते हैं और यथासंभव उन्हें नियंत्रित करने का प्रयास भी।
परंपरावादी राजनीतिशास्त्री निराधार कल्पना द्वारा आदर्श राज्य की कल्पना करते हैं, लेकिन आधुनिक राजनीतिशास्त्री अपने परम्परावादी विचारक साथियों की तरह निराधार कल्पना में विश्वास नहीं करते।
3. प्रकृति के दृष्टिकोण से अन्तर : आधुनिक दृष्टिकोण और परम्परावादी दृष्टिकोण में एक प्रमुख अन्तर उनकी प्रकृति के विषय में है।
जहाँ आधुनिक राजनीतिशास्त्र में अन्वेषण के अन्तर्गत अनुभववादी पद्धतियों का उपयोग किया जाता है, वैज्ञानिक प्रणालियों, विशुद्ध निष्कर्षों, संचयों और वृहत् सामान्यीकरणों पर बल दिया जाता है तथा आँकड़ों एवं निष्कर्षों को प्रमाणिकता को जाँच की जाती है।
वहाँ परम्परागत राजनीतिशास्त्र का स्वभाव भूतकालिक तथा ऐतिहासिक घटनाओं का विश्लेषण करना है।
4. तार्किक दृष्टिकोण से अन्तर : जहाँ परंपरागत राजनीतिशास्त्र का सिद्धान्त और निष्कर्ष तर्क पर आधृत है, वहाँ आधुनिक राजनीतिशास्त्र, गणितीय परिमाण, तथ्य संग्रह और सर्वेक्षण जैसी वैज्ञानिक पद्धतियों का अपने अध्ययन क्षेत्र में प्रयोग करता है।
यदि हम कहें कि परम्परागत राजनीतिशास्त्र केवल बौद्धिक है, तो आधुनिक राजनीतिशास्त्र यथार्थ एवं व्यवहार से सम्बद्ध है।
5. ऐतिहासिक दृष्टिकोण से अन्तर : परंपरागत राजनीतिशास्त्र के विद्वानों के अनुसार, अनुसंधान तथा विश्लेषण की प्रमुख विधियाँ ऐतिहासिक एवं वर्णनात्मक रही है।
यह राजनीतिशास्त्र तीन उपागमों के माध्यम से अध्ययन किया गया एक विषय समझता है, जिसमें
- ऐतिहासिक
- विश्लेषणात्मक तथा
- वर्णनात्मक तथ्यों पर जोर दिया गया है।
परम्परागत और आधुनिक राजनीति शास्त्र में सम्बन्ध —
उपर्युक्त विवेचन से यह स्पष्ट है कि परम्परावादी राजनीतिशास्त्र और आधुनिक राजनीतिशास्त्र में कतिपय मौलिक अन्तर है।
लेकिन इसका अर्थ यह नहीं है कि वे एक दूसरे से अलग हो गए हैं या एक का स्थान दूसरे ने ग्रहण कर लिया है। यह पूछिए तो ये दोनों दृष्टिकोण एक दूसरे के पूरक हैं और दोनों में पारस्परिक सम्बन्ध हैं।
परम्परावादी राजनीतिक साहित्य की खोजों तथा शोधों के आधार पर ही आधुनिक राजनीतिशास्त्र की नींव डाली गई है।
भूतकालीन घटनाएँ आधुनिक राजनीतिशास्त्रियों के लिए प्रयोगशाला का काम कर सकती है। आधुनिक राजनीतिशास्त्र के सम्बन्ध में भी कही जा सकती है।
राजनीतिशास्त्र के अनेक विद्वानों ने परम्परागत और आधुनिक राजनीतिशास्त्र के पारस्परिक अन्तःसम्बन्धों की ओर संकेत किया है। जहाँ तक अनुभववादी दृष्टिकोण का प्रश्न है।
यह पारस्परिक राजनीतिशास्त्र से आधुनिक राजनीतिशास्त्र का विलगाव नहीं करता। 'पॉलिटिकल बिहेवियर' के प्रमुख विद्वानों ने इस सम्बन्ध में सकारात्मक और नकारात्मक विचार प्रस्तुत किए हैं।
अब तो सबसे बड़ा प्रश्न यह है कि आधुनिक राजनीतिक विश्लेषकों को पारस्परिक राजनीतिक मान्यताओं को स्पष्ट करना चाहिए।
पारस्परिक, राजनीतिशास्त्र और आधुनिक राजनीतिशास्त्र के अटूट सम्बन्ध की ओर संकेत करते हुए हेंज इऊलाऊ ने कहा है।
मानवीय व्यवहार को राजनीतिक विश्लेषण का आधार बनाने का प्रयास एक नई शुरूआत है। मेरी समझ के अनुसार व्यवहारवादी है है।
विश्वास मानवीय अनुभवों के उन आधारों की ओर प्रत्यागमन का प्रतिनिधत्व करता है जिनमें अतीत के महान राजनीतिशास्त्रियों ने अपने विचारों के पोषण एवं विकास के तत्व पाये थे।
पुरातन राजनीतिक सिद्धान्तों को जिन गुणों के कारण महान समझा जाता है वे गुण मानवों के राजनीतिक व्यवहारों से सम्बद्ध उनकी स्पष्ट तथा कभी-कभी अन्तर्निहित मान्यताएँ हैं।
Conclusion : निष्कर्ष के रूप में कहा जा सकता है कि परम्परागत राजनीतिशास्त्र और आधुनिक राजनीतिशास्त्र में कोई ऐसा मौलिक अन्तर नहीं है।
जिसके फलस्वरूप इन दोनों को अलग-अलग किया जा सके। ये दोनों एक ही व्यवस्था के ऐतिहासिक विकास के दो चरण हैं।
ये एक सिक्के के ऐसे दो पहलू हैं जिन्हें एक दूसरे से अलग नहीं किया जा सकता। यह बात सही है कि समय के बदलते हुए प्रवाह ने पुरातन विचारधाराओं को झकझोर दिया है।
लेकिन हमें यह भी स्वीकार करना होगा कि आधुनिक राजनीतिशास्त्र ने परम्परागत राजनीतिशास्त्र की पुरातन मान्यताओं को वैज्ञानिक आधार देकर अनुशासन को सबल तथा सजीव बनाने का प्रयास किया है।
इसके पारस्परिक सम्बन्धों से हम इन्कार नहीं कर सकते।